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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 प्रायः लगातार चौविहार 108 छ / के साथ 9-1 यात्राएँ / / ____ एक महातपस्वी साध्वीजी ने प्रायः लगातार चोविहारी 108 छठ्ठ की / उन्होंने प्रत्येक छठु में सिद्धाचलजी महातीर्थ की 9-9 यात्राएँ की! प्रत्येक छठु के पारणे के दिन बियासन किया / वे पारणे के दिन भी 2 यात्राएँ करके ही पारणा करते थे !... धन्य हैं इनकी तपोनिष्ठा को ! तीर्थ भक्ति को !!... दृढ मनोबल को !!!... इनकी तीन संसारी पुत्रियों ने भी संयम अंगीकार किया है !... वे मूल मालवा के निवासी थे / उनके नाम का पूर्वार्ध पाँच प्रकार के ज्योतिषी देवों के विमानों में से एक प्रकार का सूचन करता है, उत्तरार्ध नाम कर्म की एक पुण्य प्रकृति का सूचन करता है !.. वे "आगमोद्धारक" के रूप में सुप्रसिद्ध हो गये आचार्य भगवंत श्री के समुदाय के हैं / लगातार 100 चौविहारी छठ की जाए तो 324 दिन लगते हैं / किन्तु साधु-साध्वीजी चातुर्मास में सिद्धगिरि की यात्रा नहीं करते हैं। जिससे चातुर्मास के पहले कुछ छट्ठ लगातार करके शेष छठ चातुर्मास के बाद किये / इस प्रकार दो विभाग में 108 छठ्ठ हुए होने से 'प्रायः' लगातार इस प्रकार बताया गया है। प्रायः लगातार 108 चौविहार छ / के साथ 8-8 यात्राएँ ! अग्नि संस्कार के समय एक वस्त्र जला ही नहीं / / विवाह के बाद 6 महिनोंमें ही वैधव्य प्राप्त होने पर मालवा के निवासी कंचन बहन वैराग्य वासित बनी थीं / उन्होंने सं 2009 में पालिताणा में सागर समुदाय में दीक्षा अंगीकार की / दीक्षा के बाद किसी
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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