________________ 546 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 अठ्ठाइयाँ .... लगातार 500 आयंबिल .... वर्धमान तप की 70 ओलियाँ .... सिद्धितप... चत्तारि-अठ्ठ-दश-दोय तप आदि तपश्चर्या द्वारा जीवन धन्य बनाया / वह वर्तमान में समुदाय में अध्यापन का कार्य सुंदर करवा रही है। इनके अक्षर सुंदर होने के कारण वे समुदाय की सेवा का लाभ ले रही हैं। उनके नाम का पूर्वार्ध नैगम आदि सात ... वाचक शब्द हैं। उत्तरार्ध एक सुप्रसिद्ध तीर्थंकर परमात्मा की अधिष्ठायिका देवी के नाम का पूर्वार्ध होता है। इनकी दीक्षा के दस वर्ष बाद दक्षा की दीक्षा हुई / उन्होंने दीक्षा के साथ ही छेटे जोग एवं बड़े योग की लगातार आराधना एक भी दिन छोड़े बिना अखंड रूप से छह महिनेमें परिपूर्ण की। उसके बाद उन्होंने उत्तरोत्तर तपशक्ति विकसित होने पर 30 मास क्षण ... 20 बार 20 उपवास द्वारा बीस स्थानक तप की आराधना ... 16 उपवास.... 36 उपवास.... 51 उपवास.... 68 उपवास.... एक वर्ष में 20 अछाई (कुल 36) एक वर्ष में 71 अठ्ठम (कुल करीब 185 अठ्ठम ).... 2 वर्षीतप .... सिद्धितप ... धर्मचक्रतप .... लगातार 108 आयंबिल .... वर्धमान तप की 40 ओलियाँ वगैरह विशिष्ट तपश्चर्याओं के द्वारा अपने जीवन को तपोमय बनाया है। उनका तप के साथ जाप, अभ्यास, वैयावच्च भक्ति और संयम की प्रत्येक क्रियाओं में एकाग्रता इत्यादि अत्यंत अनुमोदनीय हैं / वे चित्त प्रसन्नता और मिलनसार व्यक्तित्व के कारण सबके प्रीतिपात्र और आदरणीय बनी हैं / सं. 2007 में उनका जन्म होने से अभी उनकी उम्र 49 की है। उनके नाम के दो अक्षर का अर्थ प्रकाश देने वाली वस्तु होता है। उत्तरार्ध एक नाम कर्म की पुण्य प्रकृति का सूचन करता है, जो ऐसी विशिष्ट तपश्चर्या के कारण उनको सहज रूप से ही मिली है / उनके पद चिन्हों पर उनकी छोटी बहिन सुरेखा ने भी शंखेश्वर में दीक्षा ग्रहण की है / वह भी मासक्षमण, वर्षीतप, वर्धमानतप की ओलियाँ वगैरह तपश्चर्या में आगे बढ़ रही हैं / . धन्य हैं, ऐसे महातपस्वी साध्वीजी भगवंतों को !....