SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 622
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 भाविक बाजते - गाजते तपस्वी को अपने गृह - आंगन में पदार्पण करवाके कोई न कोई अभिग्रह घारण करने के साथ करवाते थे / उनकी अपने जीवन में 108 मासक्षमण करने की तीव्र भावना है। शासनदेव उनकी यह उत्तम भावना परिपूर्ण करने के लिए शक्ति प्रदान करे और उनको निरामय दीर्घायुषी बनाये, यही शुभाभिलाषा सह उनकी तपश्चर्या आदि आराधना की भूरि भूरि हार्दिक अनुमोदना / - उनके नाम का पूर्वार्ध पद्य रचनाओं के लिए उपयुक्त होता हुआ दो अक्षरों का एक शब्द है / उसका अर्थ "सूत्र" भी होता है / उत्तरार्ध का अर्थ "लक्ष्मी" होता है !.. उनकी गुरुणी ने 11 अंगसूत्रों को कंठस्थ किया है / उनका दृष्टांत भी इसी पुस्तक में पहले दिया गया है / . उपरोक्त महातपस्वी साध्वीजी भगवंत के साथ लगभग प्रत्येक . तपश्चर्या में जुड़े हुए दूसरे साध्वीजी भगवंत के गृहस्थपने का नाम 'दक्षा' था। छोटी सी दक्षा जब अपनी माता के साथ उपाश्रय जाती तब वासक्षेप करते हुए कविकुलकिरीट आचार्य भगवंत श्री कहते कि -"तेरा नाम दक्षा नहीं किन्तु दीक्षा है" दक्षा ने केवल आठ वर्ष की उम्र में प्रथम उपधान तप किया और तब से दीक्षा की भावना का बीज-वपन हुआ / . किन्तु दक्षा की दीक्षा होने से पहले ही उसकी बड़ी बहिन 'नीला' का दीक्षा के लिए नंबर लग गया। नीला ने 14 वर्ष की छोटी उम्र में दीक्षा ग्रहण की और अप्रमत रूप से पंचाचार की साधना में आगे बढी / उन्होंने कर्मग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र संस्कृत - प्राकृत व्याकरणादि का सुंदर अभ्यास किया। इसके साथ साथ उन्होंने दो मासक्षमण ... दो वर्षीतप .... दो बार सोलहभत्ता.... कई बहुरत्ना वसुंधरा - 3-35
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy