________________ 544 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 उन्होंने संसारी अवस्था में ही अठ्ठाई, चत्तारि-अट्ठ-दश-दोय तप उपवास, उपधान आदि तपश्चर्या की और दीक्षा लेने के बाद उनकी तपशक्ति की सोलह कलाएँ खिल उठीं / उन्होंने अपने जीवन में 36 उपवास, 42 उपवास... 45 उपवास .... 51 उपवास... 68 उपवास .... बीस बार लगातार 20 उपवास द्वारा बीस स्थानक तप की आराधना .... एक वर्ष में 20 अछाई (कुल 25 अट्ठाई) 30 मासक्षमण ... लगातार 375 आयंबिल ... वर्धमान तप की 75 ओलियाँ, श्रेणितप ... भद्रतप .... तीन वर्षीतप .... उवसग्गहरं स्तोत्र के 185 अक्षरों की आराधना के निमित्त लगातार 185 अठ्ठम .... ऐसी अनेक विशिष्ट तपश्चर्या द्वारा अपनी आत्मा को कर्म से हल्का बनाने के अलावा सुंदर शासन प्रभावना और अनेक आत्माओं के जीवन में अनुमोदना द्वारा धर्म-बीज का वपन किया है। जब उन्होंने लगातार 20-20 उपवास द्वारा बीस स्थानक तप की आराधना की, तब उपरोक्त आचार्य भगवंत ने उनको आशीर्वाद सहित प्रेरणा दी कि - "20 मासक्षमण द्वारा अरिहंत पद की आराधना करो / " पू. गुरुदेव के आशीर्वाद को सफल करने के लिए इन साध्वीजी भगवंत ने तथा जिनका दृष्टांत अब आयेगा, उन साध्वीजी भगवंत ने भी मद्रास चार्तुमास के दौरान मासक्षमण का प्रारम्भ किया और केवल पाँच वर्ष के अल्पकाल में दोनों ने 20 मासक्षमण की आराधना पूर्ण की !!! इस आराधना के दौरान इनका पूरा महिना मौन के साथ मुख्य रूप से जाप और स्वाध्याय में ही व्यतीत होता ! तप के साथ उनके अंदर समता भी इतनी कि पीने का पानी ठंडा हो या गर्म हो, जल्दी मिले - देरी से मिले तो भी किसी दिन कोई शिकायत नहीं, अपनी तपश्चर्या के दौरान दूसरे साध्वीजी मासक्षमण में जुड़े हों तो अवसर मिलते ही उनकी वैयावच्च का भी लाभ ले लेते हैं ! उनके पच्चीसवें - रजत मासक्षमण की पूर्णाहुति के मौके पर मद्रास में 237 मासक्षमण की रिकार्ड रूप तपश्चर्या हुई थी !!! पच्चीसवें मासक्षमण के दौरान हर अठ्ठम का पच्चक्खाण मद्रासवासी