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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 543 500 आयंबिल ... वर्धमान तप की 25 ओलियाँ .... नवपदजी की 9 ओलियाँ ... 99 यात्राएँ .... छठ करके सात यात्राएँ .... दीक्षित जीवन में कभी खुले मुँह नहीं रहना ... वगैरह आराधना द्वारा अपने जीवन को सफल बनाकर गये ! 281 108 मासक्षमण करने की भावना / / / नित्य भक्तामर स्तोत्रपाठी तीर्थ प्रभावक आचार्य भगवंत के समुदाय के एक ही ग्रुप के दो साध्वीजी भगवंत वर्तमानकालमें विक्रमरूप कह सकें वैसी मासक्षमण की तपश्चर्या अपने जीवन में कर रहे हैं / दोनों के प्रगुरुणी एक ही हैं। उसमें से एक साध्वीजी भगवंत को बाल्यावस्था से ही सहज रूप से वैराग्य भाव जगा / फिर भी कर्मवश शादी हुई / परन्तु उन्होंने विवाह के दो माह बाद ही अपने पिता श्री के आगे प्रवज्या की भावना व्यक्त की / पुत्री की कसौटी करते हुए पिता श्री ने थोड़ा समय बीतने दिया। किन्तु जब उन्होंने देखा कि एक पुत्री की माता होने के बावजूद उसे संतान के ममत्व से भी संयम का राग तीव्र है, तब संयम की अनुमति दी और आखिर सं. २०१८में उनकी दीक्षा माघ वदि पंचमी के दिन मुंबई लालबाग में हुई / उनके एक भाई निर्मलभाई ने भी 17 वर्ष की भरयुवावस्था में उपरोक्त पू. आचार्य भगवंत के वरद हस्तों से लालबाग में संयम ग्रहण किया / उपरोक्त साध्वीजी दीक्षा लेने के बाद ज्ञानाचार -दर्शनाचार चारित्राचार -तपाचार तथा वीर्याचार इन पांचों आचारों से यथायोग्य रूप से सुंदर आराधना कर रही हैं / उसमें भी उन्होने जो उत्कृष्ट तप की आराधना की है, वो पूर्वकाल के महर्षियों की तपशक्ति की साक्षी देती है और श्रद्धा उत्पन्न करवाती है।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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