________________ 542 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 प्रकार खंधकसूरि के 500 शिष्यों ने अंश मात्र भी द्वेष नहीं किया, उसी प्रकार इन साध्वीजी भगवंत ने भी ट्रकवाले के उपर लेशमात्र भी द्वेष नहीं किया ! ऊपर से कहा कि, "ट्रकवाले को कुछ भी मत करना" !... कैसा अपूर्व क्षमाभाव !!! सं. 2038 में अपने एक सुपुत्र को दीक्षा देने के बाद सं. 2040 में अपने पति तथा दूसरे सुपुत्र के साथ 47 वर्ष की उम्र में दीक्षित हुए इन साध्वीजी भगवंत ने मात्र 6 वर्ष के दीक्षा पर्यायमें गुरुकृपा के प्रभाव से ऐसी अद्भुत समता प्राप्त की थी ! - स्वयं की पुत्री महाराज साथ थी फिर भी "इसे संभालना" ऐसी बात भी नहीं की / स्नेहराग पर कैसी विजय प्राप्त की होगी...! उन्हें 45 मिनिट तक सहवर्ती साध्वीजीयों ने नवकार और धर्मश्रवण करवाया और अंतसमयोचित पच्चक्खाण दिये / उसके बाद अंगुली की रेखाओं पर नवकार गिनते - गिनते अन्त में - "मैं जाती हूँ / " इतना बोलकर पुनः नवकार गिनते हुए समाधिपूर्वक स्वर्गवासी हुए!... - 'यदि अन्तिम संहननवाली देह से भी ऐसे मरणांत परिषह में गुरुकृपा और दृढ मनोबल द्वारा ऐसी अद्भुत समता - सहनशीलता और क्षमा रखी जा सकती हो तो प्रथम संहननवाले पूर्व के महामुनिवरों ने मरणांत उपसर्गों में समता के बल पर केवलज्ञान तथा मुक्ति प्राप्त की, उसमें लेशमात्र भी अतिशयोक्ति हो ही नहीं सकती ! ऐसा उत्तम उदाहरण अपने जीवन के द्वारा रखने वाले इन महान साध्वीजी भगवंत के नाम का पूर्वार्ध पाँच प्रकार के आचारों में से पाँचवे आचार का सूचन करता है, तथा उत्तरार्ध तारक तत्त्वत्रयी में तीसरे तत्त्व का सूचन करने वाला है !..... वे भी गत दृष्टांत में सूचित साध्वीजी के परिवार में दीक्षित हुए थे। अपने जीवन में मासक्षमण ... सिद्धितप ... वर्षीतप... एकांतर