________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 541 ये सभी, नजदीक के भूतकालमें मीनी देवर्धिगणि क्षमाश्रमण की उपमाको प्राप्त किये आचार्य भगवंत श्री के समुदाय को अलंकृत कर रही हैं ! 280 मरणांत परिषह में भी अदभुत समता शास्त्रों के पृष्ठों पर विविध प्रकार के मरणांत भयंकर उपसर्गों तथा परिषहों में अपूर्व समता के प्रभाव से केवलज्ञान और मुक्ति की मंगलमाला का वरण करने वाले गजसुकुमाल, मेतारज, सुकोशल, खंधक, अवंती, सुकुमाल, खंधकसूरि के 500 शिष्यों, अर्णिकापुत्र आचार्य वगैरह पूर्व के महामुनियों के अनेक दृष्टांत विद्यमान हैं / परंतु इसमें किसी को असंभवोक्ति या अतिशयोक्ति जैसा लगता हो तो उसे निम्नलिखित अर्वाचीन दृष्टांत का अवश्य चिंतन करना चाहिए / सं. 2046 के ज्येष्ठ वदि 8 की बात है / 8 साध्वीजी भगवंत आकोला (महाराष्ट्र) से सुरत की और विहार कर रहे थे / अभी करीब 10 कि.मी का विहार हुआ था, वहाँ तो पीछे से एक ट्रक आयी / ट्रकने रोड़ से नीचे कच्ची सड़क पर चल रहे एक साध्वीजी को जोरदार टक्कर मारी !... साध्वीजी दूर जा गिरे / ट्रक उनके दोनों पैरों के उपर से गुजरी! पैर लगभग शरीर से अलग हो गये !... रक्त की धारा फूटी ! प्राण निकलने की तैयारी करने लगे ! फिर भी नहीं कोई चीख-चिल्लाहट या नहीं वेदना का ऊंहकार ! किन्तु स्थिरता ओर समता की मूर्ति बनकर रहे !... धीरे धीरे उच्चारण शुरू-हुआ, वेदना का नहीं परंतु नवकार महामंत्र का ! सहवर्ती साध्वीजीयाँ पूछते हैं : "शाता में हो ?" प्रत्युत्तर मिलाः "हाँ मैं श्री नवकार गिन रही हूँ / " कैसी अद्भुत समता !... सहनशीलता // ___ अपने को घाणी में पीलनेवाले अभवि -पालक के उपर जिस