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________________ 540 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 278 तपामय जीवन उपरोक्त साध्वीजी की दूसरी बहन साध्वीजीने निम्नोक्त तपश्चर्या की है। बीस स्थानक तप... सिद्धितप .... श्रेणितप ... लगातार 500 आयंबिल .... लगातार 6 वर्षीतप (उसमें सं. 2041 में छठ्ठ से वर्षांतप किया / ) इन साध्वीजी के नाम का पूर्वार्ध सम्यक्त्व के प्रथम लक्षण को सूचित करता है / उत्तरार्ध उपर मुताबिक जानना / 279 72 वर्ष की उम्र में संयम स्वीकार 72 वर्ष की उम्र जब शांति से आराम करने का समय गिना जाता है, तब उन्होंने कर्म के साथ झुझने के लिए महाभिनिष्क्रमण किया ! इन्होंने बड़ी उम्रमें पालिताना गिरनार शंखेश्वर, आबु, राणकपुर आदि तीर्थों की यात्रा विहार करके की / पिछले 40 वर्षों से एकाशन से कम तप नहीं किया / सिद्धितप... दो वर्षीतप.. वर्धमान तप की 51 ओलियाँ, 99 यात्रा आदि अनेक छोटे-बड़े तपों से इन्होंने अपना जीवन ओजस्वी एवं तेजस्वी बनाया है / इनके जीवन की एक प्रमुख विशेषता है कि वे चाहे जैसे सुख में न तो लीन बनती हैं न ही भयंकर से भयंकर दुःख में दीन बनती हैं / अभी 84 वर्ष की बड़ी उम्र में वे नवसारी में स्थिरवास विराजमान हैं / अनेक प्रकार की शारीरिक तकलीफों के होने के बावजूद अत्यंत समता और प्रसन्नतापूर्वक संयम जीवन का पालन कर रही हैं / ____ इन पाँचों श्रमणीरनों के जीवन के निर्माण में प्रेरणा का पीयूष पिलाने वाले बिदुषी साध्वीरत्ना के नाम का अर्थ "सिंह' होता है / वह भी नाम के अनुसार अत्यंत शूरवीरतापूर्वक संयम जीवन का पालन कर रही हैं।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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