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________________ 539 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 (6) उन्होंने एक वर्ष तक नवपदजी की निम्नलिखित विशिष्ट रूप में आराधना की - एक धान्य के 9 आयंबिल करने के बाद एक पारणा करके पुनः दूसरे एक धान्य के 9 आयंबिल के बाद एक पारणा कर पुनः तीसरे एक ही धान्य के 9 आयंबिल ... इत्यादि / विहार में एक धान्य की निर्दोष गोचरी नहीं मिलती तो कच्ची मूंग की दाल, उड़द की दाल या रोटी पानी में डालकर 3-4 घंटे भिगोकर वापरते हैं !!!.... उन्होंने बीचमें अठ्ठम से वर्षीतप भी किया / पारणों में पुरिमड्ढ एकाशन करते थे। वे ऐसी उग्र तपश्चर्या के साथ साथ ज्ञान ध्यान रूप आभ्यंतर तप में भी अप्रमत रूपसे अनुमोदनीय पुरुषार्थ कर रहे हैं / उनके नाम का पूर्वार्ध जो ज्ञान के पाँच प्रकारों में 'बोलता ज्ञान' कहलाता है वह है / उत्तरार्ध सबकी मनपसंद एक ऋतु का नाम है। २७७लगातार 400 छत से बीस स्थानक की आराधना उपर्युक्त साध्वीजी की बड़ी बहन ने उनसे 7 वर्ष पहले दीक्षा ली / उनका अत्यंत अनुमोदनीय दृष्टांत इससे आगे दिया गया है। तथा उनके साथ दो छोटी बहिनों ने सं. 2038 में दीक्षा ली। उनकी मातृश्री ने सं.२०४८ में 72 वर्ष की उम्र में दीक्षा ली / इन तीनों की आराधना भी अनुक्रम से निम्न प्रकार से है। बीस स्थानक की लगातार 400 छठ ... सिद्धितप .... वर्षीतप लगातार 870 आयंबिल ... उसमें भी 1 वर्ष तक महिने में 3 अठ्ठम ! गृहस्थ अवस्था में M.Sc. में फर्स्ट क्लास पास हुए इन साध्वीजी के नाम का पूर्वार्ध जीवन में अत्यंत महत्व के दो अक्षर के सद्गुण का सूचन करता है / उत्तरार्ध ऊपर मुताबिक जानना /
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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