________________ 538 / बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 __ उन्होंने लगातार 900 आयंबिल करके ऊपर बिना पारणा किये लगातार 45 उपवास शुरू कर दिये / इक्कीसवे दिन उन्हें भावना हुई कि 'मुझे शंखेश्वर तीर्थ में जाकर प्रभुदर्शन करने के बाद ही पारणा करना है।" ऐसी भावना के साथ उन्होंने नवसारी से विहार प्रारम्भ किया / ऐसी उग्र तपश्चर्या के साथ रोज विहार करते करते अनुक्रम से शंखेश्वर पहुँचे / तब बयालिसवाँ उपवास था ! ___ उन्होंने शंखेश्वर में आकर अठ्ठम किया अर्थात् कुल 45 उपवास हुए / पारणे के दिन वे स्वयं दोपहर के समय एक हाथ में तरपणी चेतना और दूसरे हाथमें लकडीका घड़ा लेकर आयंबिल की गोचरी बोहरने के लिए निकले / उनके मातुश्री भी पारणा करवाने आये हुए थे, परन्तु उन्होंने वहाँ बहोरने से मना करते हुए खुलासा किया कि - "आपने मेरे निमित्त बनवाया है इसलिए नहीं कल्पेगा" !... उन्होंने इस प्रकार आयंबिल से पारणा करने के बाद भी आयंबिल चालु रखे / थोड़े आयंबिलों के बाद बीच-बीच में अठ्ठम भी करते रहे। उन्होंने लगातार कुल 970 आयंबिल किये, फिर चैत्र सुदि 5 से पुनः मासक्षमण प्रारम्भ कर दिया !.... उन्होंने ग्रीष्म ऋतु की असह्य गर्मी में प्रसन्नतापूर्वक मासक्षमण पूरा करके अक्षय तृतीया के दिन आयंबिल से पारणा किया !... पारणे के मौके पर कोई पत्रिका नहीं, महोत्सव नहीं, प्रचार नहीं, तपस्विनी के रूपमें दिखने के लेश मात्र भी आशंसा नहीं !... रसनेन्द्रिय के उपर कैसा नियंत्रण !... मानकषाय के ऊपर कैसा बेजोड़ काबू! ___उन्होंने इसके अलावा भी 15 वर्ष के दीक्षा में निम्नलिखित अत्यंत अनुमोदनीय तपश्चर्या की है / (1) सिद्धितप (पारणे में आयंबिल) (2) श्रेणितप ( " ) (3) बीस स्थानक के लगातार 400 अठ्ठम (4) पार्श्वनाथ के लगातार 108 अठ्ठम .. (5) पिछले कई वर्षों से हर पर्युषण में अट्ठाई तप .