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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 537 पातयामि' ऐसा उनका दृढ जीवन मंत्र था और आखिर चौदहवीं अट्ठाई के दौरान पाँचवे उपवास में संपूर्ण जाग्रत अवस्थामें, सभी जीवों से क्षमापना कर अपने गुरुणी के श्री मुख से नवकार तथा पाँच महाव्रतों की आलोचना सुनते सं 2045 की अषाढ सुदि 13 के दिन समाधिपूर्वक हमेशा - हमेशा के लिए आँखें मूंद लीं / मानो कि अणाहारी पद को प्राप्त करने के लिए आहार का हमेशा के लिए त्याग कर दिया !.... - इनके जीवन में ऐसे भीषण तप के साथ में अत्यंत अनुमोदनीय अप्रमत्तता थी। वे अपना काम खुद ही करते इतना ही नहीं, बड़ों की भक्ति के लिए हमेशा खड़े पाँव तैयार रहते / उन्होंने छह कर्मग्रन्थ, व्याकरण, तर्कसंग्रह वगैरह का अर्थ सहित तलस्पर्शी अभ्यास भी किया था ! उनके नाम का पूर्वार्ध 'ज्ञान' का पर्यायवाची डेढ अक्षर का शब्द है, तथा उत्तरार्ध प्रायः सभी लोगों की प्रिय एक ऋतु का नाम है। ___ उनकी दीक्षा के सात वर्ष बाद उनकी ग्रेज्युएट तीन छोटी बहनों ने भी दीक्षा ली थी। उसके बाद दूसरे पाँच वर्ष रहकर उनकी मातृश्री की भी दीक्षा हुई थी। उनकी अनुमोदनीय आराधना की जानकारी इसके बाद के दृष्टांत में दी गई है / वास्तव में जिनशासन ऐसे महा तपस्वी आराधक संयमी आत्माओं से गौरवान्वित है। 276 |900 आयंबिल के उपर 45 उपवास की तपश्चयां के साथ नवसारी से शंखेश्वर का विहार / / / ___B.Com. तक व्यावहारिक शिक्षण प्राप्त करने वाली कोलिजियन कन्या ने सं. 2030 महा सुदी पंचमी को संयम अंगीकार किया। जिनके घर पर हमेशा दो मिठाइयाँ और दो नमकीन हाजिर हों, वैसे सुखी परिवार में से दीक्षित हुए इन साध्वीजी ने दीक्षा के बाद कर्म निर्जरार्थ उग्र तपश्चर्या प्रारंभ कर दी।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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