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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 535 पल्लीवाल क्षेत्र में पधारी / उन्होंने इस प्रदेश में गोचरी-पानी-विहार स्थानों की तथा दूसरी अनेक प्रकार की असुविधा को सहनकर भी लगातार 18 वर्ष तक इस क्षेत्रमें विचरण किया / धर्मोपदेश की गंगा बहाकर लगभग 36 जिनमंदिरों का जीर्णोद्धार तथा नवनिर्माण करवाया श्रावकों में बोये संस्कारों को जीवंत रखने के लिए 11 आराधना भवन उपाश्रयों का निर्माण करवाया / वहाँ के सुविख्यात सिरस तीर्थ की छह बार संघयात्रा का आयोजन किया / धार्मिक शिविरों का आयोजन कर, वहाँ की आदिवासी जैसी पिछड़ी जैन प्रजा में धर्म का सुन्दर प्रचार-प्रसार किया / शिष्या समुदाय ने मासक्षमण जैसी महान तपश्चर्या द्वारा धर्मप्रभावना भी की / अन्य साध्वीजी भगवंतों ने भी इस क्षेत्र के जीर्णोद्धार में सुंदर सहयोग दिया / इनकी माता साध्वीजी भी वात्सल्ययुक्त स्वभाव के कारण पूरे समुदाय में "बा महाराज" के नाम से प्रिय हो गये थे। उन्होंने गुरुआज्ञापालन, सदैव, अप्रमत्तता, मेवा-मिठाई का त्याग, 75 वर्ष की उम्र में तीसरा वर्षांतप, (कुल 4 वर्षीतप) 11 तथा 21 उपवास, नवपद तथा वर्धमान तप की ओलियाँ, चत्तारि-अठ्ठ-दश-दोय इत्यादि तपश्चर्या एवं करीब 44 शिष्या-प्रशिष्यादि श्रमणी वृंद के सुंदर अनुशासन आदि द्वारा अपना जीवन धन्य बनाया / रत्नत्रयी जैसे उपरोक्त तीन-तीन श्रमणीरत्नों को शासन के चरणों में समर्पित कर वह सं. 2050 की मेरुत्रयोदशी के दिन समाधिपूर्वक सद्गति को प्राप्त हुईं। 275 प्रत्येक पारणे में एक धान्य के आयंबिल के साथ अठाई से वर्षातप का भव्य पुस्वार्ष / ____B.Sc. में प्रथम श्रेणिमें उत्तीर्ण हुई कोलेजियन कन्या ने उपधान तप में प्रवेश किया, उसी दिन से हमेशा नीवि या आयंबिल में पाँच से ज्यादा द्रव्य नहीं वापरने का अभिग्रह लिया !... __उसने उपधान सानंद पूर्ण होते ही दीक्षा लेने का मनमें निश्चय कर लिया इतना ही नहीं, आचार्य भगवंत के आगे यावज्जीव पाँच से ज्यादा
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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