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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 273 विदुषी साध्वीजी ( बहिन महाराज) उपरोक्त साध्वीजी के साथ 10 वर्ष की उम्र में दीक्षित हुई उनकी छोटी "बहिन महाराज" ने भी अपनी अपूर्व ग्रहणशक्ति द्वारा प्रकरण भाष्य, कर्मग्रन्थ, कम्मपयड़ी, पंचसंग्रह, संस्कृत-प्राकृत व्याकरण, न्याय, काव्य, ज्योतिष आदि अनेक विषयों में प्रभुत्व प्राप्त किया है / उनकी अध्यापन कला भी उच्चकोटि की है / उनकी वक्तृत्व शक्ति अद्भुत है / वक्तृत्व से भी उनकी लेखनी में अधिक शक्ति है / श्री दशवैकालिक चिंतनिका, श्री उत्तराध्ययन चिंतनिका, श्री आचारांग चिंतनिका 'पाथेय कोईनु, श्रेय सर्व मुं... वगैरह पुस्तकों में उनकी कलम ने जो गहन चिंतन - मनन बहाया है, वह वास्तव में अद्भुत है / कुछ स्थानकवासी महासतीयाँ भी यदि वे पास के क्षेत्र में हों तो उनके अवश्य दर्शन कर बारबार उनके श्री मुख से कुछ चिंतन धारा झेलने के लिए उत्सुक हृदय से उपस्थित रहती ही हैं / इनकी अध्ययन-अध्यापन वक्तृत्व एवं लेखन के अलावा आयोजन शक्ति भी विशिष्ट प्रकार की है / छ'री' पालित संघ हो या जिनभक्ति महोत्सव, उपधान तप हो या महिला शिविर हो, सामूहिक तप हो या समूह . सामायिक हो ... संक्षेप में जिनशासन से संबन्धित कोई भी अनुष्ठान हो, उसमें इनकी आयोजन शक्ति झलक उठती ही है / इनके गुरुदेव तीर्थप्रभावक आचार्य भगवंत श्री की निश्रा में जब खंभात में 108 मासक्षमण की तपश्चर्या की हुई थी, तब भी अपने समुदाय में "बहिन महाराज' के नाम से सुप्रसिद्ध इन साध्वीजी भगवंत का तपस्वियों को शाता पहुंचाने में सुंदर योगदान था / इन्होंने अपने समुदाय के तीन-तीन आचार्य भगवंतों की सुंदर गुरुकृपा प्राप्त की है और उनके मार्गदर्शन अनुसार नवकार महामंत्र, भक्तामर स्तोत्र और पार्श्वनाथ भगवान की सुंदर आराधना की है। इन्होंने अनेक संघोंमें नवकार तथा
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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