SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 609
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 532 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 इन्होंने दशवैकालिक की टीका, उत्तराध्ययन सूत्र की टीका, पिंड नियुक्ति, ओघ नियुक्ति, 10 पयन्ना, त्रिषष्ठिशलाका पुरुष चरित्र जैसे अनेक ग्रन्थ पढे हैं और दूसरों को अध्ययन कराया है / . . वे विजय प्रशस्ति, हीर सौभाग्य, मेघदूत, अभिज्ञान शांकुतल, शांतिनाथ महाकाव्य आदि अनेक महाकाव्यों और संस्कृत द्वयाश्रय, प्राकृत द्वयाश्रय जैसे कठिन ग्रन्थों का अभ्यास वर्तमान में भी अत्यंत सरलता से करवाती हैं। इनकी ऐसी अपूर्व स्वाध्याय मग्नता और अपूर्व ग्रहणशक्ति देखकर तीर्थप्रभावक आचार्य भगवंत श्री ने उन्हें 11 अंगसूत्र कंठस्थ करने की प्रेरणा दी / इन्होंने उनकी बात का सम्मान करते हुए आचारंग-सुचगडांग ठाणांग-समवायांग-भगवती-ज्ञानाधर्म कथा-उपाशक दशांग, अंतकृत दशांगअनुत्तरोपपातिक दशांग- प्रश्न व्याकरण तथा विपाक सूत्र नाम के 11 अंगसूत्रों को कंठस्थ कर लिया ! उसमें पूरा भगवती सूत्र एकाशन तप पूर्वक कंठस्थ किया / आप संस्कृत एवं प्राकृत भाषा में छंदोबद्ध काव्य रचना भी कर सकती हैं / इनकी 'विक्रम भक्तामर' की रचना बहुत ही सुंदर एवं विद्वानों में सम्माननीय बनी है। _ इन्होंने ज्ञानाभ्यास के अलावा भक्ति, वैयावच्च, गुरुआज्ञापालन, सहनशीलता, न भाते हुए को भी निभाने की सुंदरकला वगैरह अनेक सद्गुणों से विशिष्ट गुरुकृपा और सहवर्ती सभी की अच्छी चाहना प्राप्त की है। अनेक शिष्याओं-प्रशिष्याओं के परिवार से शोभित आप स्वोपकार . के साथ विशिष्ट परोपकार और सुंदर शासन प्रभावना कर रही हैं। . इनके नाम का पूर्वार्ध समवसरण में उपर का प्रथमगढ जिसका बना होता है, उसका सूचन करता है तथा उत्तरार्ध का अर्थ 'शिखर' का पर्यायवाची स्त्रीलिंग शब्द होता है /
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy