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________________ 530 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 उनके उपर तप ओर जप के दिव्य प्रभाव से विविध गाँवों में सैंकडों बार केसर वृष्टि हुई है। . इनका विवाह 9 वर्ष की उम्र में हो चूका था / उसके बावजूद सत्संग के प्रभाव से 19 वर्ष की भर युवावस्था में उनको वैराग्य उत्पन्न हआ / अनेक प्रयत्नों के परिणाम स्वरुप दीक्षा के लिए अनुमति प्राप्त कर 20 वर्ष की उम्रमें वे दीक्षित बने थे / . इन्होंने तप के साथ स्वाध्याय और बड़ों की विशिष्ट सेवा द्वारा अद्भुत गुरुकृपा प्राप्त की है। 251 उपवास की तपश्चर्या वर्तमानकालीन 180 उपवास की शास्त्रीय मर्यादा के विशिष्ट अपवाद के रूपमें जानना / इनके नाम के दो अक्षर के पूर्वार्ध का अर्थ 'सोना' होता है और 3 अक्षर का उत्तरार्ध कुमार अवस्था का सूचक शब्द है / इनकी तपश्चर्या से प्रभावित होकर इनके गच्छाधिपति आचार्यश्री ने इन्हें "तपो वारिधि" "तपमुकुट मणि" इत्यादि बिरूदों से अलंकृत किया है। 271 लगातार 111 उपवास // इनके ही समुदाय के "तप चक्रेश्वरी" के रूप में सुप्रसिद्ध एक महासतीजी ने वि. सं. 2052 के दिल्ली (मान सरोवर पार्क-शाहदरा) चातुर्मास में 311 उपवास की दीर्घ तपश्चर्या की है / उन्होंने संवत 2051 स्वभनगर (दिल्ली) में भी 112 उपवास की तपश्चर्या की थी ! और सं, 2055 में दिल्ली में केवल गर्मजल के आधार पर 211 उपवास किये थे। इनके उपर भी अनेक बार केसरवृष्टि हुई है / कितने ही
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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