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________________ 528 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 PER लगातार बीस-बीस उपवास से बीस स्थानक की আয়না জনমান যাঁয় মালী গান !! उपर्युक्त 227 ओली के तपस्वी साध्वीजी के एक शिष्या ने लगातार 20-20 उपवास से बीस स्थानक तप की 20 ओलियाँ पूर्ण की हैं। उन्होंने इसके अलावा भी लगातार 45- 31- 30- 27- 2120- 18- 11 उपवास, 7 बार अठाई ... चत्तारि-अठ्ठ-दश-दोय तप ... सिद्धितप , एक उपवास से वर्षीतप ... अठ्ठम से वर्षीतप.... एवं लगातार 1000-500 - 225 तथा 200 आयंबिल (5 बार) एवं क्षीरसमुद्र तप (7 उपवास) वगैरह अनेकविध तपश्चर्या से अपना जीवन सुवर्ण जैसा देदीप्यमान और चंद्र समान उज्जवल यशोमय बनाया है। इनके तपोमय जीवन की हार्दिक अनुमोदना / उनके नाम के साथ साम्य रखनेवाले एक आचार्य भगवंत ने भूतकाल में साढे तीन करोड़ श्लोक प्रमाण संस्कृत साहित्य की रचना की थी / अभी भी इस नाम के प्रायः दो विद्वान् आचार्य भगवंत अलग- अलग समुदाय में विद्यमान हैं / इसी समुदाय के दूसरे दो साध्वीजी भगवंतों ने भी इसी प्रकार से लगातार 20 - 20 उपवास से बीस स्थानक तप की आराधना की है / उसमें से एक साध्वीजी ने 100 ओली का पारणा सादगीपूर्वक, सहज भाव से किया उनका दृष्टांत इसी पुस्तक में अन्यत्र दिया गया है। दूसरे साध्वीजी भगवंत पहले गृहस्थावस्था में जमीकंद के अत्यंत शौकिन थे / उन्होंने बाद में जमीकंद के भक्षण से होती अनंत जीवो की हिंसा का खयाल आते जमीकंद का एकदम त्याग किया था / परन्तु उनका विवाह स्थानवासी परिवार में होने पर कंदमूल की सब्जी बनाने का आग्रह होने से वैराग्य प्राप्तकर दीक्षा ली थी / उन्होंने भी लगातार 20-20 उपवास 20 बार कर के बीस स्थानक तप की आराधना पूर्ण की है। उनके नाम
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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