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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 527 प्रतिकूलताओं के कारण ज्यादा ओलियाँ हो सके वैसी संभावना कम ही लगती है / किन्तु थोड़ी भी प्रतिकूलता खड़ी हो जाये तो वे आयंबिल की स्मृति तीव्र बनाते हैं / इन्होंने जीवन में दवा के स्थान पर आयंबिल को तथा डोक्टर के स्थान पर नवपदजी को स्थान दिया है ! तप के साथ- साथ समता, अप्रमत्तता, जयणा, स्वाध्याय रूचि आदि सद्गुणों के कारण इन्होंने अनेकों के जीवन में धर्म के बीज का रोपण किया है। इनका नाम भी प्रातःकाल प्रतिक्रमण में बोली जाती भरहेसर की सज्झाय में आता हुआ एक महासती का नाम है / इनके नाम के पूर्वार्ध का अर्थ 'फूल' होता है / उनका हृदय भी नाम के अनुसार दूसरे जीवों के लिए फूल जैसा कोमल और अनेक सद्गुणों की सुवास से महकता है / इनके तपोमय जीवन की हार्दिक अनुमोदना / अभी वे सुरेन्द्रनगर में विराजमान हैं / 268 उपर्युक्त महातपस्वी साध्वीजी के पद चिन्हों पर इनकी प्रशिष्या भी कुछ वर्ष पूर्व दूसरी बार 100 ओली का पारणा करके पुनः तीसरी बार नींव डालकर आगे बढ़ रही हैं / उन्होंने लगातार 500-1000-1500-1700 आयंबिल किये हैं / वे हर ओली में अट्ठम तप करती हैं / उन्होंने इसके अलावा मासक्षमण सोलहभत्ता, छह अट्ठाई तथा सिद्धितप वगैरह तपश्चर्या भी की है; परिणाम स्वरूप 'उन्होंने हंस समान उज्जवल कीर्ति प्राप्त की है। वे तीसरी बार भी 100 ओली पूर्ण करनेवाले बनें ऐसी शासन देव को प्रार्थना के साथ उनके तपोमय जीवन की हार्दिक अनुमोदना /
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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