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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 16 वर्ष की उम्र में परिणय-सूत्र में बंधने के बावजूद पूज्यों के सत्संग के प्रभाव से वैराग्य वासित बनकर 29 वर्ष की उम्र में सं. 2001 में कच्छ-वागड़ समुदाय में दीक्षित हुई साध्वीजी ने दीक्षा से पहले 3 उपधान तथा वर्धमान तप की 11 ओलियाँ पूर्ण की थीं / इन्होंने दीक्षा के बाद 5 वर्ष में बीस स्थानक तप पूर्ण किया और सं 2005 में 12 वीं औली शुरू कर 19 वर्ष की अल्प अवधि में 100 ओली पूर्ण कर सं. 2040 की माघ वदि 1 के दिन राजकोट में पारणा किया / इन्होंने लंबी ओलियों में भी कई बार शुद्ध आयंबिल और ग्रीष्म ऋतु की प्रचन्ड गरमी में भी ठाम चौविहार और अलणे आयंबिल किये !.. उन्होनें एक बार लगातार साढे पन्द्रह महिने तक आयंबिल किये तब इन पर रोग का भयंकर हमला हुआ था / फिर भी मन की दृढता और आयंबिल के प्रति की अटूट श्रद्धा की बात पर इस कसौटी में खरे उतरे / 100 ओली पूर्ण होने के बावजूद इनकी तप तृषा शांत होने के बजाय उत्तरोत्तर बढती गयी। उसी कारण से उसी वर्ष पुनः वर्धमान तप की नींव डालकर लगातार 11 आलियाँ की ! फिर तो प्रतिकूलताओं के गहरे सागरमें भी इनकी तप रूपी नौका आगे बढती गयी / जिसके फलस्वरूप सं 2046 की महा सुदि 5 के दिन कच्छ-अधोई गाँव में दूसरी बार 100 ओलियाँ 74 वर्ष की बड़ी उम्रमें पूर्ण हुईं। आज वे समग्र भारत वर्ष के साध्वी समुदाय में 200 ओलीपूर्ण करनेवाले पुण्यात्माओं में द्वितीय स्थान प्राप्तकर जैन शासन के महान प्रभावक बन रही हैं / किन्तु इतने से भी उनकी तप तृषा तृप्त नहीं ही हुई / जिससे उसी वर्ष फा.सु. 5 के दिन पुन: तीसरी बार नींव डाली और देखते ही देखते 27. ओलियाँ पूर्ण कर ली / अब वृद्धावस्था और शारीरिक
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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