________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 525 गृहस्थ जीवन में ही बीस स्थानक तप की आराधना पूर्ण करनेवाले इन तपस्वी महात्मा ने 100 ओली पूर्ण करने के बाद संतोष न मानते हुए सिद्धितप / श्रेणितप / समवसरणतप / सिंहासनतप / चत्तारि-अठ्ठ-दश-दोय तप / उपवास से वर्षीतप / अठ्ठम से वर्षीतप जैसी बड़ी तपश्चर्याएँ करके पुनः सं. 2028 में अठ्ठम से वर्धमान तप की नींव डाली और मात्र 23 वर्ष में 66 वर्ष की उम्र में, 47 वर्ष के दीक्षा पर्याय में दूसरी बार वि.सं. 2051 की माघ वदि 3 के दिन १००वी ओली पूर्ण की। उन्होंने दूसरी बार 100 वीं संपूर्ण ओली अठ्ठम के पारणे आयंबिल से अर्थात् 25 अठ्ठम और 25 आयंबिल से पूर्ण की !!! . ऐसी घोर तपश्चर्या के साथ इनके जीवन में अप्रमत्तता और समता अत्यंत अनुमोदनीय हैं / वे रात्रि में 10 से 2 बजे के दौरान मुश्किल से साढे तीन-चार घंटे ही आराम करती हैं। दिन में कभी सोती नहीं हैं। वे 20 घंटों में से 12 घंटे जाप और स्वाध्याय में बिताती हैं / प्रतिदिन 20 पक्की नवकार की माला तथा अरिहंत पद की 100 माला का जाप करती हैं। 1 करोड़ नवकार जाप करने की भावना है। उनका अरिहंत पद का लगभग 2 करोड़ का जाप पूर्ण हो गया है ! इन्होंने पूर्व में गुरु महाराज की अत्यंत भक्ति और वैयावच्च करके विशिष्ट गुरुकृपा प्राप्त की है ! तप-जप और गुरु कृपा के प्रभाव से दैवीकृपा भी सहज रूप से प्राप्त हुई है। उसके प्रतीक स्वरूप कितनी ही बार वासक्षेप की वृष्टि भी हुई है! / ___ उन्होंने दूसरी बार 100 ओली पूर्ण करने के बाद बड़ी उम्र में पुनः नींव डाली और तीसरी बार 45 ओली पूर्ण करने के समाचार मिले हैं / इतनी उग्र तपश्चर्या के बीच उन्होंने 68 उपवास और 9 आयंबिल द्वारा 76 दिन में श्री नवकार महामंत्र की आराधना भी इसी वर्ष में पूर्ण की है !!! शासनदेव इनको दीर्घायुष्य के साथ तीसरी बार 100 ओली पूर्ण करने का सामर्थ्य प्रदान करें ऐसी प्रार्थना // इनकी दो शिष्याओं की भी 100 से अधिक ओलियाँ हो गयी हैं। साणंद में जन्में यह महातपस्वी साध्वीजी श्री संघ की विनंती से वृद्धावस्था के कारण अधिकतर साणंद में विराजमान रहती हैं। इनके दर्शन एक बार अवश्य करने चाहिए।