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________________ 524 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 तप के तेज से देदीप्यमान इन साध्वीजी के नाम का अर्थ भी "सुंदर तेज (कांति) वाला" होता है / उनके गुरुणी का नाम अर्थात् जो "मुक्ति की दूती" के रूप में गिनी जाती है। _ जिनके संपूर्ण नाम में चार-चार परमेष्ठी भगवंतों का समावेश होता है, ऐसे महातपस्वी गच्छाधिपति आचार्य भगवंत की वे आज्ञावर्तिनी हैं। अब तो पहचान लोगे ना इन साध्वीजी भगवंत को ?... . वर्धमान तप की दो बार 100 ओली पूर्ण करके, 266 तीसरी बार नीव डालकर, आगे बढ़ते हुए वर्धमान तपोनिधि तीन साध्वीजी भगवंत वर्धमान तप की दो बार 100 ओली पूर्ण करके तीसरी बार 89 ओली पूर्ण करनेवाले तपस्वीरत्न आचार्य भगवंतश्री का दृष्टांत आपने इसी पुस्तक में आगे पढा। ____ उसी प्रकार वर्तमान काल में साध्वीजी भगवंतों में भी तीन-तीन ऐसी तपस्वी महात्माएँ हैं, कि जो दो बार 100 ओली पूर्ण करके तीसरी बार नींव डालकर आगे ओलियाँ कर रही है / उसमें प्रथम नंबर पर पू. बापजी म.सा. के समुदाय के एक साध्वीजी भगवंत हैं, जिनका शुभ नाम एक प्राचीन महासती के नाम के समान होने से रोज बोला जाता है। सिंह राशि के यह साध्वीजी कर्मक्षय में सिंह जैसे पराक्रमी हैं। इन्होंने 19 वर्ष की भरयुवावस्था में 2004 में प्रतिकूल परिस्थितियों में भी रास्ता निकालकर संयम स्वीकारा था / इन्होंने दीक्षा लेकर उसी वर्ष वर्धमान तप की नींव डाली और सं. 2026 में प्रथम बार 100 ओली पूर्ण की। उसमें लगातार 400/500 तथा 1000 आयंबिल के अलावा 16 उपवास मासक्षमण आदि तपश्चर्या भी की।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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