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________________ 523 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 श्री के पास अनुमति माँगी / मोहाधीन बने मातृश्री द्वारा अनुमति नहीं देने पर मुमुक्षु कन्याने छह विगई का त्याग किया ! फिर भी आज्ञा न मिलने पर आखिर सागारिक अनसन प्रारम्भ कर दिया ! आखिर उत्कृष्ट वैराग्य देखकर परिवारजनों ने आशीर्वाद पूर्वक अनुमति दी / . सं. 2014 में दीक्षित हुई यह राणीगाँव (राज.) की कन्या आज करीब 80 शिष्या-प्रशिष्याओं की जीवन नैया के सफल सुकानी महातपस्विनी साध्वीजी हैं / - इनकी कर्म निर्जरा हेतु की गयी भीष्म तपश्चर्या की सूचि हाथ जोड़कर अहोभावपूर्वक पढें / (1) अठ्ठम से बीस स्थानक तप की आराधना (500 अठ्ठम) (2) पार्श्वनाथ भगवान की 108 अठ्ठम (3) अठ्ठम से वर्षीतप (4) छठ्ठ से वर्षीतप (5) महावीर स्वामी भगवान की 229 छठ (6) उपवास से बीस स्थानक की आराधना (7) तीन मासक्षमण (8) श्रेणितप (9) सिद्धितप (10) भद्रतप (11) समवसरणतप (१२)सिंहासनतप (13) सोलहभत्ता (14) 15 उपवास (15) 11 उपवास दो बार (16) दो बार 9 उपवास (17) चत्तारि अट्ठ-दश-दोय तप (18) कर्मप्रकृति के 158 उपवास (19) नवकार मंत्र के संपदा सहित उपवास (20) एकांतर 500 आयंबिल (21) नवपदजी की ओलियाँ .... इत्यादि) एक बार उन्हें तप-जप के प्रभाव से पद्मावतीदेवी ने पालिताना में स्वयमेव दर्शन दिये थे ! .. इनकी प्रेरणा से तीन स्थानों पर तीर्थ तुल्य जिनालयों का निर्माण हुआ है / जिसमें एक बीस जिनालय का भी समावेश है / इसके अलावा इनकी प्रेरणा से 3 बार 99 यात्रा संघ, 6 बार सामूहिक उपधान तप, करीब 9 छ'री' पालित तीर्थयात्रा संघ, तथा 21 बार 25-36-51-100 आदि छोड़ का उजमणा इत्यादि अनेक शासन प्रभावक आयोजन भी हुए हैं / . धन्य है, ऐसी महातपस्विनी शासन प्रभाविका साध्वीजी भगवंत को।...
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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