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________________ 520 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 रूप में प्रसिद्ध हुए। इन्होंने दीक्षा के बाद पाँच वर्ष तक एकाशने, 25 वर्ष तक बिआसने, चत्तारि अठ्ठ दश दोय तप, अष्टापदतप, बीस स्थानक तप, उसमें भी 20 अठ्ठाइयों द्वारा अरिहंत पद की आराधना, तीर्थंकर वर्धमान तप में एकाशना के बदले लगातार उपवास द्वारा 19 वे भगवान तक करने के बाद स्वास्थ्य के कारण २०वे एवं २१वे भगवान की आराधना एकांतर उपवास से की। इन्होंने वर्धमान तप की 28 औली, पोष दसमी की आजीवन आराधना, छ अठ्ठम द्वारा 99 यात्रा, वगैरह विविध तपस्याओं के साथ 3 बार एक लाख नवकार जाप, सीमंधर स्वामी का सवा लाख जाप, शंखेश्वर पार्श्वनाथ का जाप और प्रतिदिन शत्रुजय का ध्यान इत्यादि द्वारा भारी कर्म निर्जरा के साथ विशिष्ट शासन प्रभावना की थी। वे कविकुलकिरीट पू.आ.श्री. विजयलब्धिसूरीश्वरजी म.सा. के आज्ञावर्ती साध्वीयों में प्रवर्तिनी थे / उन्होंने 55 वर्ष तक संयम की आराधना के बाद अंत में इडर में स्थिरवास किया / वहाँ में 2039 की भाद्रवा सुदि 3 के दिन चतुर्विध श्री संघ की मौजुदगी में नवकार महामंत्र का श्रवण करते करते समाधिपूर्वक कालधर्म हुआ / . . "उन्होंने सुंदर प्रकार से व्रतों का पालन कर अपने नाम को सार्थक किया था !.." 264 88888 संयम हेतु 5 वर्ष तक छह विराई का त्याग / अहमदाबाद में रहती हुई शशीबहन का विवाह उनकी मातृश्री की इच्छानुसार 13 वर्ष की उम्र में हो गया था / इनको एक पुत्री होने के बाद 15 वर्ष की ही उम्र में विधवा बनना पड़ा / इतना ही नहीं कुछ समय में उनकी पुत्री ने भी अपने पिता की राह पकड़ ली !!!...
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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