________________ 98689658 6 3 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 संयम के स्वीकार के लिए तीन-तीन बार गृहत्याग। फिर भी अनुमति नहीं मिलने पर आखिर .. / / सुरतमें वि.सं. 1958 में जन्मी सुभद्राबहन के जीवन में छोटी उम्र से ही धर्म के संस्कार सिंचित हो गये थे / इन्होंने 14 वर्ष की छोटी सी उम्र में पू.आ. श्री कमलसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में दो उपधान तप कर लिए थे / संसार क्रम के अनुसार इनका 16 वर्ष की उम्र में विवाह हो गया / किन्तु इनके अंदर तो वैराग्य का दीप जल ही रहा था / उसमें भी व्याख्यान वाचस्पति प.पू.आ.भ. श्रीमद् विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के विरति पोषक प्रवचन सुनने का सुयोग मिला / इन प्रवचनों ने उनके वैराग्य के दीप को अधिकप्रज्वलित कर दिया / उन्होंने संसार के पिंजरे से मुक्त होने के लिए प्रबल पुरुषार्थ करना आरंभ कर दिया / वे एकबार संयम लेने के लिए घर से निकल गये, परंतु कुटुंबीजन उन्हें स्टेशन से वापस ले आये ! दूसरी बार कतार गाँव में मस्तक मुंडाकर बैठ गये। किन्तु परिवारजन वहाँ से भी वापस ले आये। तीसरी बार छाणी (बड़ौदा के पास) भाग गये / कुटुंबीजन वहाँ से भी वापस पकड़ कर ले आये !!!....... आखिर हताश बनी सुभद्राबहन ने अपने ब्रह्मचर्य व्रत को अखंडित रखने के लिए डामर की गोलियाँ भी खा ली !!! पोल में इस बात के फैलते ही परिवार जन इकट्ठे होकर सुभद्राबहन के पति झवेरचंदभाई को समझाने गये। झवेरचंदभाई ने कहा कि, "मिगसर पूर्णिमा तक दीक्षा ले तो मेरी संमति हैं, नहीं ले तो मुझे संसार चलाना है। सुभद्राबहन के लिए तो यह भूखे को घेवर मिलने के समान था / उनके पति वगैरह चातुर्मास पूर्ण होते ही मिगसर वदि 10 के दिन सुभद्राबहन को दीक्षा दिलाने हेतु छाणी आये / पू. मुनिराज श्री जंबूविजयजी म.सा. (बाद में आचार्य) के हस्तों से उसी दिन सुभद्राबहन ने संयम स्वीकार किया और पू. जंबूविजयजी म.सा. की संसारीबहिन महाराज तपस्विनी सा. श्री कल्याणश्रीजी की शिष्या के