________________ 518 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 मुड़े / उन्होंने इस प्रकार छोटी उम्र में महापुरुषार्थ से संयम स्वीकार किया !!! उसके बाद वि.सं. 1984 में फाल्गुन सुदि 2 के दिन प.पू.आ. श्रीमद् विजय दानसूरीश्वरजी म.सा. के शुभ हस्तों से उन्होंने बड़ी दीक्षा ग्रहण की और इनके ही समुदाय के सा. श्री लक्ष्मीश्रीजी का शिष्यत्व स्वीकार किया / लगातार 39 वर्ष तक गुरुणी की सुंदर वैयावच्च कर उनके स्वर्गवास के बाद उन्होंने समुदाय का भार कुशलता से वहन किया। पंचसंग्रह, कम्मपयडी, व्याकरण, न्याय आदि के तलस्पर्शी अध्ययन से अनेक आश्रित साध्वीजी को सुंदर तत्त्वामृत का पान करवाया। 8-9-1012 वर्ष की छोटी-छोटी उम्र की अनेक आत्माओं को संयम प्रदानकर, सुंदर संयम पालन द्वारा आदर्श साध्वीजीयों को तैयार किया / आप अप्रमतरूप से आवश्यक क्रियादि करती हुई हमेशा 500 खमासमण देकर एवं अनेक वस्तुओं के आजीवन त्याग द्वारा सुंदर रूप से संयम का पालन कर रही हैं / भर गर्मी की विहारादि के परिश्रम में भी जब तक अपना जाप, खमासमण, कायोत्सर्ग आदि आराधना न कर लेती तब तक मुँहमें पानी भी नही डालती हैं / दीक्षा के दिन से यावज्जीव सभी फलों तथा मेवे का त्याग किया है / अपने परम गुरुदेव के वंदनादि का लाभ मिलता है तभी ही निश्चित मिठाई की छुट, उसके अलावा मिठाई बन्द रखती हैं / हमेशा तीन विगई का त्याग है एवं दही की विगई मूल से कायमी बंद है / आडंबर रहित सादगीमय जीवन अल्प उपधि इत्यादि अनेक प्रकार की विशुद्ध संयम साधना द्वारा आश्रित साध्वी गण के लिए पूरा आलंबन पेश कर रही हैं / आज भी वे 150 से अधिक शिष्या-प्रशिष्यादि परिवार के प्रवर्तिनी पद को सार्थक कर रही हैं....