________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 517 262/ रोज 500 खमासमण आदि विशिष्ट आराधना करनेवाले स्वहस्तों से वेष पहननेवाले साध्वीजी 88888888 अहमदाबाद के झवेरीवाड़ विस्तार में सं. 1962 में जन्मी जासुदबहन को बचपन से ही पूजा, सामायिक, चौविहार आदि के धर्म संस्कार मिले थे / 17 वर्ष की उम्र में इनका विवाह सम्पन्न हुआ / इस समय में प्रखर प्रवचनकार मुनिवर श्री रामविजयजी (बाद में पू.आ.श्री विजय रामचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.) के सं 1980-81-82 में अहमदाबाद की विद्याशाला में हुए चातुर्मासिक प्रवचनों से अनेक नवपरिणित युवकों के हृदय में वैराग्य की ज्योत प्रज्वलित हुई / जासुदबहन की आत्मा भी इन प्रवचनों से वैराग्यवासित बन गयी / उन्हें संसार कटु जहर समान लगने लगा / किन्तु संसार के महापिंजर में कैद इस नवपरिणित पंखी के लिए इस कैद में से निकलना अत्यंत दुष्कर था / परिवार जनों को इस बात का पता चलते उन्होंने इन पर पूरी चौकीदारी रखना प्रारम्भ किया / इनके लिए अब दर्शन-वंदनादि के लिए भी बाहर निकलना मुश्किल था / फिर भी जासुदबहन अपने प्रवज्या के निर्णय पर अडिग रही / उन्होंने एक दिन ससुराल में कहा कि, "मैं पीहर जाती हूँ।" और पीहर में कहा कि मैं . ससुराल जाती हूँ।" - इस प्रकार सबको विश्वास में डालकर अपना इच्छित कार्य सिद्ध करने के लिए अपने मामा की पुत्री लीलावती बहन के साथ रात्रि में यकायक भागकर शेरीसा तीर्थमें प्रकट प्रभावी पुरुषादानी श्री पार्श्वनाथ प्रभु के सम्मुख अपने ही हाथों से वेष पहनकर, 'करेमि भंते' का उच्चारण कर वि.सं. 1983 के ज्येष्ठ वदि 6 के दिन 21 वर्ष की भर युवावस्था में, मात्र 5 वर्ष ही वैवाहिक जीवन व्यतीत कर जैन शासन के सच्चे अणगार बने / उन्होंने अपना नाम आंतर शत्रुओं पर 'जय' प्राप्त करने हेतु इसके अनुरूप ही रखा / . ...बाद में परिवारजनों ने आकर हो-हल्ला किया किन्तु प्रबल वैराग्य और अडिग निश्चय ने उन्हें परास्त कर दिया / स्वजन हताश हृदय से वापस