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________________ 516 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 कैसी दीक्षा ! न ठाठबाठ ! न कोई मुहूर्त ! . ... उसके बाद उमराला गाँव के जिनालय में आये। वहाँ नवदीक्षित ने स्वयं प्रभु के समक्ष चौविहार उपवास का पच्चक्खाण लिया। वाड़ीलालभाई ने श्री संघ को पूरी बात बतायी और नवदीक्षित को संभालने की जिम्मेदारी सौंपी। श्री संघवालोंने हाँ दी और स्वयं वाडीभाई ससुराल पक्ष की लिखित सहमति लेने बाहरगाँव गये / इस ओर संघ ने शाम को नवदीक्षित को उमराला छोड़ने की बात कही !... आखिर मणिबहन की सलाह अनुसार वह दीवाली माँ के साथ 3 मील दूर पीपराली गाँव गये। वहाँ श्री संघ की आज्ञा लेकर उतरे / . इस ओर वाडीभाई को मंजूरी के लिखित कागज मिल चूके थे। वे यह कागज लेकर खंभात गये / वहाँ सा. श्री गुणश्रीजी के प्रगुरुणी को कागज बताकर उनका आज्ञापत्र लेकर पछेगाँव गये। वहाँ सा. श्री गुणश्रीजी को पत्र पढाये। उन्होंने नवदीक्षित को पछेगाँव लाने को कहा। वाड़ीभाई तथा मुनिमजी वहाँ से उमराला होकर पीपराली आये / पूरी बात हुई / आखिर दूसरे दिन गुरु-शिष्या का मिलन हुआ। सा. श्री गुणश्रीजी ने फाल्गुन वदि 13 के दिन जिनालय में ठमणी रखकर "करेमि भंते" का उच्चारण करवाया!... वह शुभ दिन था वि. सं. 1992 फाल्गुन वदि 13 का। वे 13 माह तक अजोगी रहे। इस दौरान भी उनके विनय - वैयावच्च के अद्भुत गुण देखकर प्रमुख श्राविकाएँ उन्हें "सा.विनयश्रीजी" के प्यार के नाम से बुलाने लगे। इनकी खंभात में प्रथम चातुर्मास के बाद कपड़वंज में पू. आ. श्री अमृतसूरीश्वरजी के वरद हस्तों से छोटी और बड़ी दीक्षा हुई / इस प्रसंग पर उनके संसारी पिताश्री ने खूब ठाठबाठ किया था। ___इस प्रकार वड़ के पेड़ के नीचे स्वयमेव वेष पहनकर दीक्षा लेनेवाले यह साध्वीजी आज 108 से ज्यादा शिष्या - प्रशिष्याओं पर वात्सल्य की शीतल छाया देते हुए सुंदर संयम का पालन और शासन प्रभावना करवा रहे हैं / इन्होंने पू. आ. श्री विजय धर्मधुरंधरसूरीश्वरजी म.सा. के पास से अनेक आगम सूत्रों की वाचना ली है / इन साध्वीजी के नाम का अर्थ "कुशल-चतुर" होता है / वे नाम के अनुसार गुण से शोभित हैं।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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