________________ 514 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 भड़क उठे / दोनों के बीच बोलचाल होने लगी / प्रभावती के नेत्रों में से स्त्रीस्वभावसुलभ अश्रुधारा बहने लगी / यह बातें उसके माता-पिता को पता चलने पर उन्होंने अपने घर आने का उन्हें आग्रह किया / किन्त प्रभावतीबहन ने दृढतासे जवाब भेजा कि- "आप मुझे दीक्षा नहीं दिला सके तो अब आपके पास आने में क्या फायदा ! अब तो मैं ससुराल से ही हिम्मत कर संयम पथकी ओर प्रयाण करूँगी !.. माता - पिता को इस बातसे दुःख हुआ / इस और पति-पत्नी के बीच बोलचाल होने से शांतिभाई ने हुक्म किया कि, "अब जिनालय जाने की इजाजत नहीं मिलेगी !.. प्रभावतीबहिन ने प्रतिकार स्वरूप उपवास किया !... सास के कहने से दूसरे दिन जिनालय गये / प्रभावती बहन के पिताजी अपने बड़े भाई की पुत्री धीरजबहन के साथ जिनालय के सामने खडे रहकर दीक्षा के बारे में बातचित कर रहे थे / धीरजबहनने प्रभावतीबहन को आश्वासन देते हुए कहा कि, "हम तुम्हें दीक्षा दिलाएंगे!" उतनी देरमें प्रभावतीबहन की मातृश्री भी आ पहुँची / उन्होंने कहा "बेट दीक्षा भले लेना / मेरा इसमें निषेध नहीं किन्तु तुम घर तो चलो / " प्रभावतीबहन आखिर माता-पिता के घर आ गये / इस और शांतिलालभाई ने प्रभावतीबहन को दीक्षा न लेने और अपने घर ले जाने हेतु जमीन-आसमान एक कर दिया / परन्तु तलगृह में छिपाया हुआ रत्न इस तरह सरलता से नहीं मिलने वाला था !... .. प्रभावतीबहन के मामा तथा बड़े भाई पू. आ. श्री नेमिसूरिजी के पास महुवा गये और पूरी बात की / किन्तु उन्होंने ससुर पक्ष की आज्ञा के बिना दीक्षा देने की मनाई की। प्रभावतीबहन के बड़े भाईने तार कर शांतिलालभाईको महुवा बुलाया / वहाँ पू. आचार्य श्री वगैरह ने उन्हें बहुत समझाया फिर भी वह नहीं माने / आखिर सभी वापस घर आये / . ... दो वर्ष का समय बीत गया / प्रभावतीबहन ने अन्त में गुप्त दीक्षा लेने की अपनी योजना माता-पिता को बतायी / माता-पिता भी अब सम्मत हो गये / पिताश्री ने बोटाद जाकर सा. श्री. गुणश्रीजी के आगे बात की। साध्वीजी ने निषेध नहीं किया और यथायोग्य रूप से हिम्मत दी। पिताश्री ने घर आकर प्रभावतीबहन को कहा, "बेट ! अब तुम्हारा कार्य सिद्ध होगा।