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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 ____513 भी लज्जा गुण के कारण अपने हृदय की बात माता-पिता को नहीं कह सकी / इसलिए न चाहते हुए भी उनको ससुराल जाना पड़ा / उन्होंने उपधान तप की माला पहनते समय दही की विगई का. सर्वथा त्याग कर दिया / ससुरालमें प्रभावतीबहन के मन में तो संयम के विचार घूमते थे। वह इसलिए कोई बहाना निकालकर संयम लेने के लिए नयी-नयी योजनाएं बनाती थी, किन्तु उसमें सफलता नहीं मिली / सुसराल में रही प्रभावतीबहन अपना अधिकांश समय समायिक प्रतिक्रमण एवं ज्ञानाभ्यास में बिताने लगीं। . इसी दौरान प्रभावतीबहन के माता-पिता को पू.मुनि श्री धर्मसागरजी म. सा. के उपदेश से सम्मेतशिखरजी आदि तीर्थों के दर्शन करने की भावना उत्पन्न हुई / उन्होंने अपनी पुत्री को भी साथ ले जाने की भावना से उसे सूचित किया। इस बात से प्रभावतीबहन के आनंद का पार नहीं रहा / उन्होंने यह बात अपने पति के समक्ष रखी / उनके पति ने तीर्थयात्रा हेतु स्पष्ट मना कर दिया। आखिर प्रभावती बहन के बड़े भाई नगीनभाई ने हिम्मत देते हए कहा : बहिन ! कपड़े लेकर चली आओ / मेरे रहते तुम्हारा कोई बाल बाँका भी नहीं कर सकेगा !.. इससे निर्भय बनी प्रभावतीबहन ससुराल पक्ष में किसी की आज्ञा लिये बिना माता-पिता के घर आ पहुँची / प्रभावतीबहन इस प्रकार 500 यात्रिक भाई बहिनों के साथ स्पेश्यल रेल में शिखरजी, मारवाड़, आबुजी, राणकपुर की पंचतीर्थी, गिरनार, तारंगाजी, पालिताना आदि कई तीर्थो की यात्रा कर तीन महिनों में वापस लौटी / प्रभुभक्ति के प्रभाव से वैराग्य का रंग ज्यादा और ज्यादा गहरा हुआ / प्रभावतीबहनने पालीताणा में अपने मातापिता से कहा कि "या तो मुझे दीक्षा दिलाओ, या यहाँ श्राविकाश्रममें छोड़ जाओ / परन्तु मोहाधीन बने माता-पिता उसे अपने घर ले गये। प्रभावती बहन पर घर आने के बाद सगे-संबंधियोंने ससुराल जाने .. के लिए भारी दबाव डाला / प्रभावती को इसलिए न चाहते हुए भी ससुराल जाना पड़ा / उन्होंने मन में सोचा कि - "ससुराल में उपालंभ मिलेगा तो दीक्षा का मार्ग सरल बनेगा / किन्तु ससुराल में अलग ही योजना बन रही थी। उसके अनुसार प्रभावतीबहन का सबने अच्छा मान रखा / इस कारण से उनको ससुराल रहना पड़ा / पतिदेव के आगे अपनी आध्यात्मिक भावना व्यक्त करते ही वे
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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