________________ 512 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 उसके द्वारा खंभात में धार्मिक पाठशाला की स्थापना करवायी / इन साध्वीजी का नाम, अर्थात् नाम कर्म की एक ऐसी पुण्य प्रकृति कि जिसके उदय से जीव प्रायः सभी लोगो में प्रिय बनता है। 261 जंगल में वड़ के पेड़ के नीच स्वय वष परिधान। उपर्युक्त साध्वीजी भगवंत की प्रशिष्या की शिष्या साध्वीजी भगवंत आज विद्यमान हैं / उन्होंने भी अपने जीवनमें ऐसे ही विशिष्ट प्रकार के पराक्रम द्वारा संयमरूपी अनमोल रत्न की प्राप्ति की थी। उनका गृहस्थावस्था में नाम प्रभावती बहन था। वह गुजरात के पंचमहाल जिले के वेजलपुर गाँवमें रहती थी / उनका विवाह 14 वर्ष की छोटी उम्र में सं. 1987 में इसी गाँव के शांतिलालभाई के साथ हुआ / इनको अभी तक ससुराल में भेजा ही न था, उस समय गांधीवादी आंदोलन में जुड़े शांतिलालभाई को 6 माह की कैद की सजा हुई / इस घटना से प्रभावती और उनके माता-पिता को बहुत दुःख हुआ। कुछ समय बाद गोधरा में प.पू. शासन सम्राट् आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय नेमिसूरिश्वरजी म.सा. के समुदाय के पू. मुनिराज श्री पद्मविजयजी म.सा. आदि मुनिवरों को और उपरोक्त दृष्टांतमें वर्णित साध्वीजी भगवंत की प्रशिष्या सा. श्री गुणश्रीजी आदि ठाणा का चातुर्मास हुआ / चातुर्मास के अन्तमें उपधान तप तय हुआ / गोधरा से 8 मील की दूरी पर आये वेजलपुर गाँव में यह समाचार फैलते वहाँ की अग्रणी श्राविका धीरजबहन जो कि प्रभावतीबहन के चाचा की पुत्री होती थी, उन्होंने उपधान तप में जाने का तय किया / प्रभावती बहन की भी उनके साथ उपधान तप करने की भावना हुई / पूर्व के दुःखद प्रसंग से उसका मन शान्त हो इसीलिए माता-पिता ने भी राजी खुशी से अनुमति दे दी। उपधान तप के दौरान साध्वीजी भगवंतों का सुंदर संयममय शांत और सुप्रसन्न जीवन देखकर प्रभावती के हृदय में संयम जीवन जीने की भावना जगी / उन्हें संसार के तथाकथित वैषयिक सुख जहर समान लगने लगे। फिर