________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 509 | आचार्य श्री की तीर्थयात्रा के साथ शासन रक्षा 258/ हेतु जान लूटाने की तैयारी के साथ अपर्व दीर्थदर्शिता एक तीर्थ की रक्षा हेतु उन आचार्य भगवंत ने अपने सभी शिष्यों के साथ किले के चारों ओर खड़े रहकर पूरी रात चौकीदारी की थी। उन्होंने केवल अपने पट्ट शिष्य को वहाँ से रवाना कर दिया था। उन्होंने उसे दबाव पूर्वक रवाना करते हुए कहा कि, " मैं शायद भले ही मिट जाऊँ / किन्तु तुझे तो मेरे पीछे शासन चलाना है / तू इसलिए यहाँ से चला जा / " 259|| ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए अद्भुत जागृति / साध्वीजीयों का उपाश्रय साधुओं के उपाश्रय के पास था / वयोवृद्ध आचार्य भगवंत ने वहाँ पहुँचते ही स्थिति देख ली / उन्होंने ऊपर चढने से पूर्व अग्रणियों को बुलाकर दरवाजे को ताला लगवाया / वे उसके बाद ही शिष्यों के साथ पुरुषों के उपाश्रय में ऊपर चढे / अबला गिनी जाती नारियों द्वारा संयम की आज्ञा 260 न मिलने पर दिखाये गये अद्भुत - पराक्रमों की यशोगाथा / ____सौराष्ट्र के बोटाद गाँव में सं. 1924 में जन्मी सांकली बहन का विवाह 14 वर्ष की उम्र में हो चुका था / परन्तु उन्हें दो वर्ष बाद 16 वर्ष की उम्र में विधवा बनने से गहरा आघात लगा / किन्तु धार्मिक संस्कार होने के कारण वे विपत्ति के समयमें विषाद दूर कर समता भाव से भावित बनकर संयम रंग में रंगाने लगे / उस समय बोटाद गाँव की ओर संवेगी साधु साध्वीजीयों का विहार विरल ही होता था / परन्तु पुण्योदय में पू. बुद्धिचंद्रजी म. क शिष्य :