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________________ 508 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 255] शल्योद्धार की सफल प्रेरणा एक महात्मा विशाल समुदाय के बड़े थे / वह हमेशा रात्रि में एकाध साधु को अपने पास बिठाते और माता का वात्सल्य देकर उसके हृदय में स्थान बनाते / वे उसके दोषों का शुद्धिकरण करवा लेते / जब वे महानिशीथ सत्र के शल्योद्धार की बातें करते, तब अच्छे अच्छे साधुओं की शुद्धि करने की भावना तीव्र हो जाती ! 88888888 256|| बिमार प्रशिष्य के पैर दबाते आचार्य श्री। मैंने इन आचार्य भगवंत को अपने प्रशिष्य की केन्सर की भयंकर बीमारी में पैर दबाते देखा है। उस समय वह प्रशिष्य बेहोश अवस्थामें थे। मैंने उन पूज्यश्री से कहा - "आप पैर न दबाओ। यह लाभ मुझे लेने दो / वे दृढ स्वर में बोले / "खुद मरे बिना स्वर्ग नहीं जाया जाता" ! 257/ बीमारी में भी केरी वापरले की बात सुनते ही आँखों में से बहती अश्रुधारा केरी के आजीवन त्याग की प्रतिज्ञा ले चुके मुनि बहुत बीमार पड़े। डॉक्टर ने केरी वापरने की सलाह दी / यदि कारणवशात् गुरुदेव आज्ञा दें तो प्रतिज्ञा में छूट थी / डोक्टर ने इसीलिए गुरुदेव के ऊपर दबाव डाला / गुरुदेव ने उन्हें इतना ही पूछा कि, " तू इस कारण से केरी वापरेगा ? निर्दोष मिले तो ही लेनी है / मैं तुझे छूट देता हूँ / " बस.... इतना सुनते ही उन केरी के त्यागी मुनिवर की आँखो में से आँसु बहने लगे / वात्सल्यमूर्ति गुरुदेव ने यह देखकर तुरन्त अपनी बात वापस खींच ली /
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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