________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 507 38 निष्परिग्रहता की पराकाष्ठा / एक तपस्वी मुनिराज दीक्षा के समय लिया हुआ संथारा 25 वर्ष बाद भी वापरते हैं। अब तो वह फटकर आधा ही रहा है। किन्तु फिर भी इसके ऊपर पैरों को मोड़कर सो जाते हैं / निष्परिग्रहता की कैसी पराकाष्ठा ! मोह को मारने का उपाय इन महात्मा को हमेशा लिखने के कारण अच्छी पेन रखनी पड़ती थी / किन्तु फिर वह पेन मोहक न बने इसलिए उसके उपर कागज चिपका देते थे, और कागज के उपर श्याही लगा देते थे / इससे पेन की मोहकता समाप्त हो जाती थी / 253/ कागज की मितव्ययिता यह महात्मा अच्छे कागज के उपर लिखने का काम करने के बजाय आने वाले पत्रों के लिफाफों को खोलकर लिखने हेतु बहुधा उसका ही उपयोग करते हैं। 254 निर्दोष पानी हेतु 20 मील का विहार !... अन्त में चौविहार उपवास !!! 88888888 यह महात्मा पानी भी निर्दोष मिलता है, तो ही वापरते हैं। एक बार उन्होंने इस हेतु 20 मील का विहार किया था, किन्तु वहाँ भी निर्दोष पानी नहीं मिलने पर प्रसन्नतापूर्वक चौविहार उपवास का पच्चक्खाण कर लिया !