________________ 506 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 का सम्पूर्ण त्याग करना ! यह महात्मा कभी दिन में निद्रा लेते हैं, तो एक उपवास का दण्ड भुगतते हैं / शिष्यों के प्रति अद्भुत हितचिंता एक आचार्य भगवंत भोजन -मंडली में भी अपने शिष्यों को शास्त्रों के गूढ प्रश्न पूछते / उनका मानना था कि यदि ऐसे प्रश्नों के जवाब खोजने में शिष्यों का मन एकाकार हो जाए तो उनको आहार करते समय रागादि दोष नहीं जगेंगे / शिष्यों के हित के लिए महाकरुणा ! महावात्सल्यता ! 249 नमनीय नवकार निष्ठा इन महात्मा की नवकार के प्रति कैसी अपार निष्ठा होगी कि जब हृदय रोग का कातिल हमला हुआ और डॉक्टरों ने 48 घंटे की सीमा बाँध दी तब भी ... औषध नहीं ही लिया और सबको कहा कि, "माता नवकार ही मेरा रक्षण करेगी / " वास्तव में वैसा ही हुआ / वह महात्मा उसके बाद दिनमें 10-15 मील हमेशा चलकर तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय की यात्रा भी कर आये। . 250|| पदवी की महानता, फिर भी आसन की अल्पता कई शिष्यों के एक गुरु का ज्यादा से ज्यादा दो बड़े आसन बिछाने का अभिग्रह था, किन्तु शिष्य कभी भक्ति के आवेश में तीन आसन भी बिछा देते / गुरुदेव कई बार यह वस्तु पकड़ लेते / वे स्वयं कई बार आसन गिनते और दो से ज्यादा जितने आसन होते, वे स्वयं बाहर निकाल देते !