________________ 504 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 कोई श्रावक वंदन करने के लिए आता तो झिझककर पूछते कि, "पुण्यशाली ! आप जिस ओर पोस्ट का डिब्बा है उस और जाने वाले हो क्या ? उस भक्त भाई के जवाब में कोई शंका लगती तो महाराज कार्ड डालने के लिए नहीं देते / उनका मन बोल उठता 'मेरे निमित्त से यह कार्ड डालने उस दिशामें जाये तो मुझे कितना दोष लग जाएगा ? किन्तु अन्त में कोई योग्य आदमी मिलता, तब ही वह कार्ड देते / किंतु फिर भी उनका मन बार-बार विचार तो करता ही रहता कि, 'उस डिब्बे में जब कार्ड गिरा होगा, तब वहाँ कोई जीव-जन्तु हुआ तो? मैंने तो वहाँ प्रमार्जना नहीं की / अरे ! कैसी विराधना हो गयी। धन्य है ऐसे महात्माओं को ? जो सही अर्थो में जिनशासन के प्रभावक हैं। 243|| दूध पाक से अन्जान खाखी महात्मा / इन खाखी महात्मा को पता नहीं था कि दूधपाक किसे कहा जाता ? कभी दूधपाक वापरने का अवसर आया तो उन्होंने वापरते हुए अपने शिष्य से कहा, "भाई ! यह कढ़ी तो बहुत मीठी लगती है !" 244|| आदर्श गुरु आज्ञा पालन गुरुदेव श्री की आवाज सुनते ही शिष्य दौड़ आते / कभी रात्रि में गुरुदेव आवाज देकर शिष्य को बुलाते / शिष्य 'जी' कहते और उनके पास पहुँच जाते / किन्तु वृद्ध गुरुदेव अर्धतन्द्रा में तुरंत सो जाते / एक बार शिष्य हाथ जोड़कर वहाँ ही खड़े रहे ! रात को दो बजे तब लघुशंका करने जगे गुरुदेव ने खड़े शिष्य को देखकर पूछा "कैसे खड़ा है ? कब से खड़ा है ?" शिष्यने कहा, "आपने बुलाया इसलिए आकर खड़ा हूँ। रात 9 बजे से खड़ा हूँ / "