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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 503 239 अद्भुत सादगी यह महात्मा घिसकर एक दम छोटी-हाथ में पकड़ भी न सकेंवैसी पेनसिल हो जाती तो भी उसका उपयोग कर ज्यादा कस निकालते / २४०|भक्तों को पैसे के काम का कहना बन्द ! __ महात्मा ने एक दिन किसी भक्त को कुछ ही रूपयों का काम बताया / इससे भक्त ने मुँह बिगाड़ दिया / बस उस दिन से उन महात्मा ने हमेशा के लिए भक्तों को पैसे के काम का कहना बन्द कर दिया। स्वोपकार के भोग पर 241|| परोपकार किया जाये क्या ? इन व्याख्यानकार महात्मा को किसी श्रावकने प्रश्न पूछा कि, "आपका सुंदर व्याख्यान सुनकर कोई आपके पास आपकी प्रशंसा करे तो आपका मान-कषाय जगता है क्या ? यदि आप सरलता पूर्वक 'हाँ' कहो तो मेरा दूसरा प्रश्न है कि, "जिससे अपना अहित हो और दूसरों का हित दिखाई दे, वैसी प्रवृति जैन साधु से हो सकती है क्या ?" वह व्याख्यानकार महात्मा यह सुनकर गहरे आत्मनिरीक्षण में डूब गये / उन्होंने तब से एकदम जरूरी कारणों के अलावा व्याख्यान के पाट का त्याग कर दिया / - वंदनीय पापभीरता वह थे, अत्यंत पापभीरु महाराज / जल्दी जल्दी तो डाक लिखना ही क्या ? किन्तु कभी निरूपायता से डाक लिखी जाती तो एक पोस्टकार्ड लिखते तो सही, किन्तु लिखने के बाद उनके पास वह कार्ड आठ दिन तक पड़ा रहता /
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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