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________________ 502 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 मेहमान को सेक की थैली से डाम देने आये ? नहीं... मुझे यह सेक नहीं करना। यह तो कर्म निर्जरा का सुनहरा एवं बिना माँगा मौका है !" 236] बिना सहायक आदमी, नागपुर से शिखरजी की यात्रा! यह थी गुरु-शिष्य की बेजोड़ संयमी जोड़ी / उन्होंने नागपुर से शिखरजी की यात्रा प्रारम्भ की, किन्तु बिना सहायक आदमी के ही ? शिखरजी जाकर वापस आये ! सम्पूर्ण निर्दोष संयम जीवन की रक्षा के साथ ही ! 237 लघुता में प्रभुता बसे जोग में बैठे शिष्यों की गोचरी में थोड़ा आहार बढ गया / झूठा भी हो गया था / अब यदि परठने जायें तो दिन बढ जाये इस चिंता से शिष्य की आँखों में से आँसु आ गये / गच्छ के बड़े आचार्य भगवंत ने उनकी आँख के आँसु देख लिये / दूसरे किसी को कहे बिना उस शिष्य के पास बैठ गये और समय देखकर उसकी बढ़ी हुई गोचरी तुरंत . ही वापर गये / शिष्य की आँखों में आँसु अब भी आते थे / किन्तु वे हर्ष के आँसु थे / 238/ अद्भुत मितव्ययिता वे आचार्य भगवंत दैनिक समाचार पत्रों के ऊपर की साईड की बिना छपी पट्टियाँ काट कर ले लेते और उसके ऊपर अपनी रचनाएँ बनाते लिखते और संभाल के रखते / /
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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