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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 501 8 आधाकमी आहार दोष से बचने हेतु तीर्थभूमि में से शोध विहार तीर्थाधिराज श्री शत्रुजय की यात्रार्थ सहज रूप से गये हुए विशाल समुदाय को लेनी पड़ती आधाकर्मी 'भक्ति' देख बड़े गुरु ने तीन-चार दिन में ही यात्राएँ करके सबको विहार करवा दिया ! 233 अदभुत गुस्मक्ति वह महात्मा हमेशा ‘संवेग रंगशाला' का ठीक-ठीक समय तक स्वाध्याय करते / उनको जब भी गुर्वाज्ञा से अलग चातुर्मास करना पड़ता, तब वे चातुर्मास में हमेशा गुरु की दिशा में थोड़े कदम चलकर उनको वंदन करते / 88888 888 / 234 लगातार 32 वर्षीतप के पारणे में नाक सदध धान इन महात्मा ने लगातार 32 वर्ष तक वर्षीतप किये / वे उपवास के पारणे पर एकाशन करते, और पारणे में नाक से दूध वापर लेते। वे कहते कि इससे रस पर विजय मिलती है और आरोग्य प्राप्त होता है / "व्याधि अर्थात् कर्म निर्जरा का सुनहरा मौका / गुरुदेव पीठ में फिरते हुए वायु की पीड़ा को समाधि से सहन करते थे। शिष्य पानी के सेक की थैली लाये / गुरुदेव ने भारी स्वस्थता के साथ कहा कि, "मेहमान को मिठाई खिलाई जाती है, तीन-चार दिन रुकने का आग्रह किया जाता है, किन्तु डाम थोड़े ही दिये जाते हैं ? तुम तो 'वायु' नामके
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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