________________ 500 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 किन्तु आचार्य देव नहीं ही माने / उन्होंने शिष्य से कहा कि, "मेरा झूठे मुंह नहीं बोलने का अभिग्रह है। आज सहसा बोला गया, मैं इसलिए 25 खमासमण का तय किया हुआ दण्ड भुगत रहा हूँ।" धन्य हैं उनकी व्रत पालन की निष्ठा को! 230 ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए निमित्तनाशकी अपूर्व सजगता - एक मुनिवर ने अपने शिष्यों के बह्मचर्य की सहज रक्षा के लिए उपाश्रय के पिछले भाग के खुले द्वार में लोहे की खड़ी सलाकाएँ लगा देने की प्रेरणा दी। उनकी आज्ञा को तुरन्त अमली बनाया गया। कैसी निमित्त-नाश की जागृति ! 231 रसनेन्द्रिय को जीतने वाले संत एक महात्मा को मिठाई वगैरह स्वाद प्रचूर द्रव्यों का तो त्याग था ही। किन्तु उन्हें फिर भी रोटी खाते समय भी राग होने का भय था; इसीलिए वे प्रत्येक रोटी पर एरंडी का तेल लगाकर ही वापरते थे। दूसरे महात्मा सभी वस्तुओं को एक पात्रमें इकट्ठा कर उसमें आयंबिल खाते का किरियाता डाल देते। तीसरे महात्मा मुँह में एक ही बाजु से प्रत्येक कौर उतारते अर्थात् किसी कौर को चबाते नहीं थे / जैसे एक और पक्षाघात हुआ हो उस प्रकार जान बुझकर वापरते / . राग को धूल चटाने वाले इन महात्माओं को वंदन ! वंदन !