________________ 496 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 (22) साध्वी श्री प्रियदर्शनाश्रीजी (नं. 1 के सगे भाभी की बहिन) (23) साध्वी श्री कमलप्रभाश्रीजी (नं. 1 के मौसी की पुत्री) संसारी अवस्था में मध्यप्रदेश के इंदोर जिले में गौतमपुरा वगैरह गाँवों में जन्मे हुए उपरोक्त मुनिवरों के साथ सं. 2050 की अक्षयतृतीया के दिन पालिताना में मुलाकात हुई / तब उसमें से मुनिराज श्री चंद्ररत्नसागरजी के 800 आयंबिल हुए थे और आगे बढ़ने की भावना थी। वे प्रायः दो ही द्रव्यों से ओली करते और 2 घड़ी पहले ही पानहार का पच्चक्खाण ले लेते हैं / उन्होंने 5 वर्ष से वनस्पति बन्द की हुई थी। वे पूरे चातुर्मास में कठोर (द्विदल) नहीं वापरते थे / हाल में ही उनके लगातार 2700 आयंबिल का पारणा धार तीर्थ (म.प्र.) में हुआ है। अन्य मुनिवरों ने भी यथायोग्य तप-त्याग तथा ज्ञानाभ्यास में अच्छी प्रगति साधी है। (ब) एक परिवार के आठों ही सदस्यों की एक साथ दीक्षा - पहले संतानों ने दीक्षा ली हो और बादमें माता- पिताओंने भी दीक्षा ली हो, ऐसे तो अनेक दृष्टांत वर्तमानकाल में देखने को मिलेंगे / एक या दो संतानों के साथ माता पिताने दीक्षा ली हो, वैसे दृष्टांत भी कई देखने को मिलेंगे / अकेले कच्छ जिले का विचार करें तो भी भूज, कोड़ाय, सांधव वगैरह गाँवों में वैसे परिवार हैं / जब समग्र भारत की गिनति करने जायें, तो यह सूची काफी लम्बी हो जाएगी / उसमें से एक विशिष्ट उदाहरण का विचार करें, जिसमें अपनी छह संतानों (2 सुपुत्रों एवं 4 सुपुत्रियों) के साथ माता-पिता (कुल 8) ने संयम ग्रहण किया हो, वैसा भी दृष्टांत विद्यमान है। . शंखेश्वर तीर्थ के पास आये झींझुवाड़ा में आज से 22 वर्ष पहले उपरोक्त प्रकार के एक परिवार ने शासन प्रभावक, प.पू.आ.भ. श्री ॐकारसूरीश्वरजी के वरद हस्तों से संयम ग्रहण किया था, और आज सुन्दर चारित्र और ज्ञानाभ्यास के द्वारा आत्मकल्याण के साथ सुन्दर शासन प्रभावना कर रहे हैं।