________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 493 आराधना-साधना का ही एक मात्र मुख्य लक्ष्य / वे अपने अंतरंग परिणामों का ही विशेष अवलोकन करते हैं / उन्हें वाह-वाही की बिल्कुल परवाह नहीं है / नामना की कामना नहीं / वे आध्यात्मिक स्वाध्याय एवं आत्मचिंतन में ही रचे-पचे रहते हैं / उनकी उस समय 85 के आसपास की वर्धमान आयंबिल तप की ओली चालु थी / वे आयंबिल खाते में बोहरने नहीं जाते थे। घरों में से ही जो सहजता से कल्पनीय मिलता है वह ही वे बोहरते हैं / पानी भी पानीखाते का नहीं लेते हैं / पूज्यश्री वर्ष में एक बार ही कपड़ों का काप निकालते हैं / उन्हें किसी महोत्सवादि का शौक नहीं हैं / व्याख्यान देने का भी उन्हें रस नहीं है। पूज्यश्री की अध्ययन -अध्यापन में अपूर्व रुचि है / पूज्यश्री का एक ही मुख्य लक्ष्य है कि किस तरह स्वयं के अध्यवसाय उत्तरोत्तर निर्मलनिर्मलतर से निर्मलतम बनें / पूज्यश्री इसके लिए जिनाज्ञा का सूक्ष्म रूप से पालन करते हैं / युवावस्था होने के बावजूद कुतूहलवृत्ति या उत्सुकता का नामोनिशान नहीं / अपने गुरुजनों का भी इन्होंने अच्छा विश्वास संपादन किया है / उन्होंने इनकी अनुकुलता अनुसार 2-3 महात्मा के साथ विचरण करने की सुविधा कर दी है। विशिष्ट विद्वत्ता होने के बावजूद उसके प्रदर्शन से बचने हेतु व्यारव्यानादि के लिए सहवर्तियों को ही आगे करते हैं / ऐसा आत्मलक्षी परिणतिलक्षी, अंतर्मुखी आदर्श संयम जीने वाले इन महात्मा के नाम का पूर्वार्ध का अर्थ 'दुनिया' होता है / उत्तरार्ध का अर्थ "समकित" या देखना ऐसा होता है / सुविशुद्ध संयममूर्ति इन महात्मा को हार्दिक वंदन !... वे व्याख्यानवाचस्पति सुविशाल गच्छाधिपति के रूपमें सुप्रसिद्ध आचार्य भगवंत श्री के समुदाय को अलंकृत कर रहे हैं / पुनः जिनशासन के शणगार समान इन महात्मा की भूरि भूरि हार्दिक अनुमोदना /