________________ 492 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 उनके नाम के पूर्वार्ध अरिहंत परमात्मा के लिए उपयोग होता दो अक्षर का शब्द है तथा उत्तरार्ध का अर्थ "कांति-तेज" होता है। _____ वंदन हो शुद्ध एषणासमिति के आराधक महात्मा को ! 220 केवल चाय-दूध खाखरे से नित्य एकाशन || कर्मसाहित्यनिष्णात, नैष्ठिक ब्रह्ममूर्ति, सच्चारित्र-चूड़ामणि, महान आचार्य भगवंत के एक दीर्घचारित्री शिष्य वर्षों से नित्य एकाशन कर रहे हैं। वे सवेरे नवकारसी के समय केवल दो तरपणी - चेतना लेकर एकाशन की गोचरी लेने निकल जाते हैं / (झोली में दूसरे पात्र लेते भी / नहीं हैं) एक चेतना -तरपणी में चाय + दूध तथा खाखरे बोहरते / खाखरों का चूर्ण करके चाय-दूध में डाल देते हैं / दूसरी तरपणी में घरों में से ही उबाला हुआ पानी बोहरकर लाते हैं / वे केवल इन्हीं द्रव्यों से एकाशन करते हैं / जब कभी पानी बढ जाये तो मुश्किल से 2-4 माह में कपडोंका काप निकाल देते हैं / पूज्यश्री जिनालय तथा प्रतिक्रमण में भाव विभोर होकर स्तवन -सज्झायादि गाते हैं / ... - वे अभी अहमदाबाद में बिराजमान हैं / पूज्य श्री तीर्थंकर परमात्माओं के कल्याणकों की सुंदर आराधना श्री संघों को कराते रहते हैं / इनके नाम के पूर्वार्ध का अर्थ 'चरित्र' होता है तथा उत्तरार्ध का अर्थ 'कांति-तेज' ऐसा होता है / 221 - परिणतिलक्षी साधुता / __5 वर्ष पूर्व सुरेन्द्रनगर में एक मुनिवर के दर्शन हुए थे / उनके जीवन में अनुमोदनीय अंतर्मुखता देखने को मिली / सतत आत्मलक्षी