________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 ____491 का स्वेच्छा से परित्याग करके ... एक ही स्थान से सारी गोचरी न बोहरकर, अनेक घरों में से थोड़ा थोड़ा बोहरकर, सच्चे अर्थ में गोचरी की गवेषना करते। इनकी इस क्रिया से कइयों के हृदय में अहोभाव तथा अनुमोदना के द्वारा धर्म के वीज का रोपन हो जाता था ! ... धन्यहै उन महात्माओं को ! दोनों महात्माओं के नाम का उत्तरार्ध ज्योतिष में सबसे महत्व के ग्रह का सूचन करता है / एक महात्मा का नाम प्रभु महावीर स्वामी के समय के एक सुप्रसिद्ध राजर्षि का नाम है / उन्होंने केवल इरियावही तक आने के बावजूद दीक्षा ली और अभी हमेशा 5 गाथा याद करते हैं / तथा 500 गाथा का स्वाध्याय करते हैं / वे एकाशने से कम का पच्चक्खाण नहीं करते हैं। उनका गुरु समर्पणभाव अद्भुत है / वे कई बार रात्रि में 3-4 घंटे काउस्सग्ग करते हैं। दूसरे महात्मा के नाम का पूर्वार्ध, सिद्धचक्र पूजन में जिन 28... का पूजन होता है, वह है / 219|| शुद्ध गोचरी के अभाव में तीन-तीन उपवास !!! इन महात्मा ने कई वर्षों तक राजस्थान में ही विचरण किया / वे नित्य एकाशन करते थे / इन्होंने वर्धमानतप की 70 ओलियाँ भी की थीं। वे शुद्ध गोचरी पानी की गवेषणा तथा निर्दोष गोचरी नहीं मिलने पर 3-3 उपवास कर लेते, किन्तु अपने निमित्त से बनी गोचरी का स्वप्न में भी ख्याल नहीं करते ... उनकी निश्रामें प्राय: हर वर्ष 2-3 उपधान होते, उसमें अच्छी संख्यामें आराधक शामिल होते थे / उनके शांत और वात्सल्य युक्त स्वभाव के कारण अनेक आराधक उनकी निश्रा में आराधना करने हेतु उत्कंठित रहते थे / वे दो वर्ष तक आचार्य पद पर रहे / उनका सं. 2045 में चैत्र सुदि 5 के दिन शंखेश्वर तीर्थ में समाधिपूर्वक कालधर्म हुआ / उनके दीक्षा लेने के कुछ वर्ष बाद उनके पिता श्री ने भी दीक्षा ली थी / वे नवकार महामंत्र के बेजोड़ आराधक, अध्यात्मयोगी प.पू. "पन्यासजी महाराज" के शिष्यरत्न थे /