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________________ 490 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 217 केवल पांच साधारण व्यों से यावज्जीव एकाशन करने का अभिग्रह उपरोक्त प्रवर्तक महात्मा के दो शिष्यों का यावज्जीव एकाशन करने का अभिग्रह है। एकासने में भी केवल पाँच द्रव्य ही वापरना / उसमें कमी हो सकती है, किन्तु अधिकता तो नहीं ही !..... इन पाँच द्रव्यों में भी निश्चित किये हुए रोटी, दाल, चावल, सब्जी, तथा कैसा सुन्दर वृत्तिसंक्षेप तप !!! कैसा सुन्दर रसेन्द्रिय तथा आहार संज्ञा के उपर नियंत्रण !!! सभी मिठाई-फल-मेवा वगैरह त्याग करके केवल शरीर को परिमित किराया देकर उसमें से ज्यादा से ज्यादा साधना का कस निकालने का कैसा सुंदर प्रयास !!! हमेशा एक ही प्रकार के द्रव्य वापरने के बावजूद भी परिवर्तन की कोई अपेक्षा नहीं, कोई परेशानी नहीं / कैसी सुंदर अंतर्मुखता!.. आत्मानंदिता!.. धन्य है इन महात्माओं को !... 218 | अपरिचित प्रदेशों में उग्र बिहारों के बावजूद भी निर्दोष गोचरी के गवेषक महात्मा !! सम्मेतशिखर महातीर्थ का छ'री' पालित संघ निकला था। उसमें से इस समुदाय के दो महात्मा संघके रसोड़े से गोचरी नहीं बहोरते थे किन्तु 1-2 कि.मी. दूर गाँव से जैन या अजैन घरों में से निर्दोष गोचरी बोहराकर वापरते थे !... यह महात्मा संघमें हमेशा मिठाई-नमकीन आदि मन पसन्द वस्तुओं
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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