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________________ बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 489 रोज दो-तीन घंटे प्रमुजी के समक्ष खड़े खड़े 216/ | वंदना... अनुमोदना .. गहाँ के अद्भुत आराधक प्रर्वतक पद पर विराजमान एक महात्मा का कई वर्षों से एक अद्भुत नित्यक्रम चल रहा है। वे प्रतिदिन जिनालय में प्रभुजी के समक्ष दो तीन घंटे खड़े खड़े परमात्म वंदना ... महापुरुषों को वन्दना ... सत्पुरुषों के सुकृतों की अनुमोदना ... तथा स्वदुष्कृतों की गर्दा ... अत्यंत गद्गद हृदय से भाव विभोर बनकर मंद स्वर से उच्चारपूर्वक करते हैं, तब उनकी आंखों में से अहोभाव ... तथा पश्चात्तापभाव जन्य अश्रुओं की धारा बहती है / इस अश्रुधारा में अनगिनत कर्मों का कचरा साफ हो जाता है / वे इस आराधना द्वारा अद्भुत चित्त प्रसन्नता की अनुभूति कर रहे हैं। इनके शिष्य भी इसी प्रकार की आराधना कर रहे हैं / इनके द्वारा इस प्रकार की आराधना करवाने से कई संघों के लोगों ने आनंद की अनुभूति की है / इन महात्मा ने बाल योग्य शैली में "संस्कार धन' नाम की पुस्तिकाओं का सैट तैयार करवाया है, जो बालकों में जैन तत्त्व के संस्कार डालने में कारगर साबित हुआ है / पूज्यश्री ने दूसरी भी कई पुस्तकें लिखी हैं / उसमें से कुछ पुस्तकें काफी लोकप्रिय हुई हैं / इनके सुमधुर प्रवचनों ने भी कइयों की जीवन दिशा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। उपरोक्त प्रवर्तक महात्मा के नाम का पूर्वार्ध रत्नत्रयी के एक तत्त्व का सूचन करने वाला है / जब कि उत्तरार्ध का अर्थ "छिपा हुआ" ऐसा होता है। पूज्यश्री के लघुबंधु आचार्य भगवंत के नाम के पूर्वार्ध का अर्थ 'कल्याण' होता है / उत्तरार्ध उपर अनुसार जानना / वन्दन हो इन बंधु युगल महात्माओं को /
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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