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________________ 488 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 को महावीर स्वामी भगवान और गौतम स्वामी की जोड़ी की याद आ जाती थी ! गुरु थे, 36 करोड 63 लाख नवकार जाप के आराधक सूरिजी। शिष्य भी आगे जाकर तपस्वी सूरीश्वर बने / उनका अपने गुरुदेव के प्रति अनन्य समर्पण भाव था / वे बिना विकल्प गुरुदेव की किसी भी आज्ञा का 'तहत्ति' करते इतना ही नहीं, किन्तु गुरुदेवश्री की इच्छा मात्र को भी इंगित आकार से समझकर उसके अनुसार वर्तन कर गुरुदेव को हमेशा प्रसन्न रखते थे / परिणाम स्वरूप गुरुदेव की कृपा भी शिष्य के उपर अनराधार बरसती / एक दिन की बात है / शिष्य ने 16 उपवास के पारणे के दिन गुरुदेव श्री को वंदन करके नवकारसी का पच्चक्खाण माँगा / गुरुने पूछा - "आज नवकारसी का पच्चक्खाण कैसे ?" शिष्य ने कहा - "गुरुदेव ! आज मेरा सोलहभत्ते का पारणा है इसलिए ..." गुरु ने कहा "तेरे में ऐसी स्फूर्ति दिखाई देती है कि तू अभी और 16 उपवास कर सकता है, तो फिर" ... सुविनीत शिष्य ने तुरन्त ही गुरुवचन का सम्मान करते हुए कहा 'तहत्ति , गुरुदेव ! सोलह उपवास के पच्चक्खाण दो / " शिष्य की शक्ति एवं समर्पणभाव की परख करनेवाले गुरुदेव ने भी तुरन्त ही 16 उपवास का पच्चक्खाण एक साथ दे दिया। शिष्यने भी अंजलि जोड़कर प्रसन्नचित्त से पच्चक्खाण का स्वीकार किया और नित्य बढते भावों से दूसरे 16 उपवास भी उल्लासपूर्वक पूर्ण किये !!! धन्य गुरुदेव ....! धन्य शिष्य ...! सहवर्ती मुनि तो यह प्रसंग देखकर आश्चर्य एवं अहोभाव से इस गुरु-शिष्य की बेजोड़ जोड़ी को निहारने लगे !!! आज यह गुरु-शिष्य की जोड़ी जीवित नहीं है / लगभग 22 वर्ष पहले उनका कालधर्म हुआ / किन्तु आज भी वे अपनी आराधना और सद्गुणों के कारण हजारों लोगों के हृदय में बसे हुए हैं / कहो कौन होंगे, यह गुरु शिष्य ? इन गुरुदेव के नाम के अन्य समुदाय में एक आचार्य भगवंत अभी विद्यमान हैं / शिष्य का चार अक्षर का नाम शंकर का पर्यायवाची नाम है / अब तो खोज लोगे ना ?!
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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