________________ 484 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 और हठयोग के भी अच्छे अभ्यासी थे / उन्होंने 85 वर्ष की वृद्धावस्था में पैदल गिरनार तथा सिद्धगिरि की यात्रा की थी। छोटी उम्र से ही वैरागी ऐसे पूज्यश्री को बड़ों के अति आग्रह से निरूपायता से शादी करनी पड़ी। परंतु पूज्यश्रीने 3 वर्ष के अनासक्त वैवाहिक जीवन के बाद स्वयं मुंडन करवाकर साधु-वेष पहन लिया। परिवार जनों ने विरोध किया तो तीन दिन तक भूखे प्यासे बन्द कमरे में रहना मंजूर किया, किन्तु अपने निर्णय में अडिग रहे / आखिर परिवार जनों ने संमति दी / उनकी दीक्षा के पाँच वर्ष बाद उनकी धर्मपत्नी, सास तथा साले ने भी संयम ग्रहण किया। ढाई अक्षर के इनके नाम को सभी मुमुक्षु आत्मा अवश्यमेव चाहते हैं / कहो कौन होंगे ये आचार्य भगवन्त ? 211 विहार में ८५वी ओली के साथ हमेशा चार बार वाचना एवं व्याख्यान देते मुनिवर। कुछ वर्ष पूर्व दो माह के समय में अलग-अलग छह गाँवों में थोड़े थोड़े दिनों के अन्तर में दस ठाणों के एक ग्रुप के साथ मिलना हुआ / . वैराग्यदेशनादक्ष के रूप में सुप्रसिद्ध इन आचार्य भगवंतश्रीने गृहस्थावस्था में प्रेम सगाई करने के बाद जिनवाणी श्रवण के प्रभाव से वैराग्य प्राप्त कर शादी किये बिना ही संयम ग्रहण कर लिया ! इनके साथ इनके प्रभावक शिष्यरत्न हैं, जो इनके प्रत्येक कार्य में दाहिने हाथ की तरह अच्छा सहयोग दे रहे हैं / इन महात्माने ८५वीं ओली का पारणा चैत्र महिने के गर्मी के दिनों में किया। यह महात्मा रोज के चालु विहारों में भी ८५वीं वर्धमान आयंबिल तप की ओली के साथ व्यारव्यान देते और सहवर्ती महात्माओं को दशवैकालिक सूत्र आदि चार अलग-अलग विषयों पर वाचना देते / विहार ... लगातार आयंबिल ... व्याख्यान ... चार बार वाचना ... इन सब के बाबजूद भी इन महात्मा के मुख के उपर जो प्रसन्नता और सहजता थी, वह वास्तव में अनुमोदनीय धी / नव आगंतुकों को खयाल भी नहीं आता कि इन महात्मा