________________ 483 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 अवश्य पढने जैसी है। इनके द्वारा पढे गये 425 संस्कृत- प्राकृत के ग्रंथों की सूचि भी इस पुस्तक में है। इन मुनिवर के नाम में ढाई अक्षर का पूर्वार्ध अर्थात् सभी धर्मी जीवों का मुख्य ध्येय और उत्तरार्ध सभी संसारी जीवों को बहुत ही अच्छा लगता है। अब तो समझ गये, कौन होंगे ये महा मुनिवर ?! शाबास !... इनके गुरुदेव श्री अर्थात् वर्तमान में शिविरों के माध्यम से हजारों युवकों के जीवन में टींग पोईन्ट लाने वाले, युवा जागृति प्रेरक, शासन प्रभावक, उत्तम आराधक आचार्य भगवन्त श्री ... जिनकी निश्रामें मालगाँव से शत्रुजय का ऐतिहासिक संघ भी निकला था। ऐसे आचार्य भगवंतों एवं महा मुनिवरों को करोड़ वन्दन ... !!! संस्कृत पढने के लिए हमेशा 12 माइल छाणी से बड़ोदा यातायात !! लगभग यह बात 100 वर्ष पुरानी है / ज्ञानाभ्यास रसिक एक मुनिवर संयोगवशात् अपने बड़ों के साथ कुछ महिने छाणी में रुके थे / उस समय बड़ौदा राज्य के राजाराम शास्त्री संस्कृत के बड़े विद्वान गिने जाते थे / मुनिवर को लगा कि “ऐसे विद्वान् के पास संस्कृत काव्य और न्यायशास्त्र का अभ्यास करने को मिले तो कितना अच्छा !" ....आखिर बड़ों की विनयपूर्वक अनुमति प्राप्त कर हमेशा प्रात:काल में छाणी से 6 माईल का विहार कर बड़ौदा जाते / जहाँ से मुनि श्री पंडितजी की सुविधानुसार अध्ययन करके वापस 6 माईल तक पैदल चलकर छाणी आ जाते ! कैसी तीव्र अध्ययन रुचि होगी इन महात्मा की !!... आगे जाकर इन महात्मा ने आचार्य की पदवी प्राप्त की / पहान शासन प्रभावक बने / 105 वर्ष के दीर्घायुषी बने / उसमें अन्तिम 33 वर्ष लगातार वर्षीतपों में व्यतीत किये !!! उससे पहले 26 चातुर्मासों के दौरान हमेशा चातुर्मास में एकांतरित उपवास करते थे / पूज्यश्री जाप-ध्यान