________________ - बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 481 पूज्यश्री भगवानं या गुरु महाराज का फोटो कभी भी नाभि से नीचे न रहे इस हेतु उपाश्रय तथा विहार में पूरी सावधानी रखते हैं / इनके नाम का पूर्वार्ध अर्थात् इस अवसर्पिणी काल में भरत क्षेत्र से सबसे अन्त में मोक्ष में जानेवाले महापुरुष का नाम !! कहो कौन होंगे यह महात्मा ? मात्र 6 दिन में दशकालिक सूत्र कंठस्थ / केवल 9 वर्ष की बाल्यावस्था में दीक्षित हुए एक बालमुनि ने 6 दिन में पूरा दशवैकालिक सूत्र कंठस्थ कर लिया ! आज वे विशिष्ट कवित्वशक्ति, लेखनशक्ति और वक्तृत्वशक्ति के त्रिवेणी संगम द्वारा बहुत ही अनुमोदनीय शासन प्रभावना करते आचार्य पद पर शोभायमान हो रहे हैं / उनके प्रवचनों में सामान्य दिनों में भी प्रवचन होल एकदम भर जाता है। उनके द्वारा कई स्थानों पर आयोजित शिबिरों में सासु -बहु की शिबिर पति-पत्नी की शिबिर तथा युवकों की शिबिरों ने बहत ही ख्याति प्राप्त की है। कइयों के जीवन में परिवर्तन बिन्दु (टर्निंग पोईन्ट) लाने में निमित्त रूप बनी है। - उनके नाम का पूर्वार्ध नाम कर्म की उस पुण्य प्रकृति का सूचन करता है जो प्रायः सभी को बहुत ही अच्छी लगती है / उत्तरार्ध का अर्थ कवच होता है। 209 बारह वर्षों में 425 संस्कृत-प्राकृत कन्या का अभ्यास एक मुनिवर ने केवल 12 वर्ष के दीक्षा पर्याय में संस्कृत-प्राकृत भाषा के व्याकरण-न्याय-षट्दर्शन- जैन आगम वगैरह 425 जितने कठीन ग्रन्थों का बहुरत्ना वसुंधरा - 3-31