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________________ 480 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 "द्वादशार नयचक्र" नाम के कठीन ग्रन्थ का यशस्वी संपादन किया है। इस ग्रन्थ में भारतीय दर्शनों के 12 प्रकार के दार्शनिक मतों की विशेषताएँ एवं कमियों का वर्णन किया गया है / उसके अलावा जैन दर्शन के अनेकांतवाद की स्पष्टता एवं प्रतिष्ठा की गयी है / इस महत्त्वपूर्ण कार्य को पूर्ण करने हेतु इन्होंने दो दशक तक मेहनत की / परिणाम स्वरूप तत्त्वज्ञान के विद्यार्थियों को एक अपूर्व और अनुपलब्ध ग्रन्थ सुन्दर व्यवस्थित और सुवाच्य स्वरूप में सुलभ बना / तन से दुर्बल किन्तु मन से मजबूत ऐसे इन मुनिवर ने प्रचंड ज्ञानशक्ति से, समर्थ आत्मबल से, अद्भुत इच्छाशक्ति से, कठीनतम ग्रन्थ का संशोधन-संपादन-प्रकाशन किया / पूज्यश्री ने इसके लिए तिब्बत, चीन, जपान, इग्लेन्ड, अमरिका आदि देशों में से प्राचीन ग्रन्थों की अलग-अलग पद्धतिसे ली गयी प्रतिकृतियाँ, माईक्रोफिल्म प्रतें आदि सामग्री इकट्ठी की। इस ग्रन्थ से परिचित देश-विदेश के उच्च साक्षरों के साथ परिचय किया / पत्रव्यवहार किया और उनके मन मंतव्य जानने का प्रयास किया। पूज्यश्री ने प्रत्येक छोटे-बड़े प्रतिपादनों के बारे में मल तक पहूँचकर उसका तारतम्य प्राप्त करने की सत्यशोधक दृष्टि का परिचय दिया। ऐसी अपूर्व श्रुतभक्ति करने वाले मुनिवर को भावपूर्वक वंदन / इन महात्मा का संस्कृत प्राकृत आदि भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, उर्दू, फारसी आदि कितनी ही विदेशी भाषाओं पर अच्छा प्रभुत्व है / इनके पास जैन धर्म के विविध विषयों का ज्ञान प्राप्त करने हेतु अक्सर विदेशी लोग आते रहते हैं / अरिहंत परमात्मा एवं अपने स्वर्गस्थ पिता गुरुदेवश्री के प्रति उनका समर्पण भाव अन्यत अनुमोदनीय है। किसी का भी पत्र आये या किसी को पत्र लिखें उसे प्रथम प्रभुजी तथा गुरुदेव श्री की प्रतिकृति के समक्ष रखते हैं / उनकी भाव से अनुज्ञा लेने के बाद ही पत्र पढते हैं, या पोस्ट करवाते हैं / इन्होंने सं. 2055 का चातुर्मास प्राचीन ग्रन्थों के बारे में विशेष जानकारी प्राप्त करने हेतु जैसलमेर में किया था / जहाँ का ज्ञान भन्डार जैन-जगत का एक अमूल्य निधि है।
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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