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________________ 478 बहुरत्ना वसुंधरा : भाग - 3 उपरोक्त तपस्वी महात्मा के एक शिष्य भी करीब 55 साल की उम्र में दीक्षित हुए एक महातपस्वी मुनिवर हैं, जिनका नाम भगवान श्री महावीर स्वामी के बड़े भाई के नाम के साथ साम्य रखता है / आपने भी वर्धमान तप की 60 से अधिक ओलियाँ की हैं एवं प्रतिवर्ष बड़ी तपश्चर्याएँ करते हैं / आज तक लगातार 20-24-30-32-45-42-5257-62 उपवास किये हैं। तपस्वी गुरु-शिष्य की जोड़ी की हार्दिक अनुमोदना / अदभुत ज्ञान पिपासा / 206 अनुमोदनीय ज्ञानोपासना / / विशिष्ट स्मरणशक्ति / / पूर्व के महा मुनिवर विराटकाय 14 पूर्व सह समस्त द्वादशांगी सूत्रों का अभ्यास और स्वाध्याय किसी प्रत (पुस्तक) के आलंबन के बिना मुँह से ही करते थे / परन्तु अवसर्पिणी काल के प्रभाव से यादशक्ति घटने के कारण आगमों को लिखवाना पड़ा / ___ आज से लगभग 300 वर्ष पूर्व हो चूके उपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराज तथा उपाध्याय श्री विनयविजयजी महाराज ने लगभग 1200 (मतांतार में 2000 ) श्लोक प्रमाण के तत्त्व चिंतामणि नाम के न्याय शास्त्र के एक कठीन ग्रन्थ को एक ही रात में कंठस्थ कर लिया था / ... पूज्य आचार्य श्री मुनिसुंदरसूरिजी म.सा. सहस्रावधानी थे / वे एक साथ एक हजार बातें अपनी स्मृति में रख सकते थे / ... शायद किसी को उपरोक्त बातों में अतिशयोक्ति के दर्शन होते हों तो उसे निम्न अर्वाचीन साधु-साध्वीजियों के दृष्टांतों पर अवश्य गौर करना चाहिए /
SR No.032468
Book TitleBahuratna Vasundhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahodaysagarsuri
PublisherKastur Prakashan Trust
Publication Year1999
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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